यह कहानी द्रोणागिरी के निवासी की जुबानी
जब हनुमान जी संजीवनी बूटी खोजते हुए इस गांव में पहुंचे तो वे चारों तरफ पहाड़ देखकर वह भ्रमित हो गए उन्हें समझ नही आ रहा था कि संजीवनी बूटी किस पहाड़ पर हो सकती है। तभी उन्होंने गांव के एक बुजर्ग महिला से संजीवनी बूटी का पता पूछा तो उस महिला ने एक पहाड़ की तरफ संकेत किया। हनुमान जी उड़कर इस पहाड़ पर पहुंचे लेकिन वहां पहुंचकर देखते है कि चारें तरफ जड़ी-बूटियां ही लगी है तब उन्होनें तय किया कि वह पूरा पहाड़ ही उठी ले जाएगें। दूर लंका में मेघनाद के शक्ति बाण का चोट खाकर लक्ष्मण मूर्छित पड़े थे। राम विलाप कर रहे थे और पूरी वानर सेना मायूस थी। जब हनुमान पहाड़ उठाए रणभूमि में पहुंचे तो सारी वानर सेना में उत्साह की लहर दौड़ पड़ी। पूरी वानर सेना में हनुमानजी की जयजयकार होने लगी। सुषेण वैद्य ने तुरंत औषधियों से भरे उस पहाड़ से संजीवनी बूटी को चुनकर लक्ष्मण का इलाज किया जिसके बाद लक्ष्मण को होश आ गया।
लेकिन लंका से दूर उत्तराखण्ड के इस गांव के निवासियों को हनुमान जी का यह काम नागवार गुजरा। यहां के लोगों में नाराजगी इस कदर बढ़ गई कि उन्होंने उस वृद्ध महिला का भी सामाजिक बहिष्कार कर दिया जिसकी मदद से हनुमानजी उस पहाड़ तक पहुंचे थे। लेकिन उस वृद्ध महिला कि गलती की सजा आजतक इस गांव की महिलाओं को भी भुगतना पड़ता है। इस गांव में आराध्य देव पर्वत की विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है। इस दिन यहां के पुरूष महिलाओं के हाथ का दिया भोजन नहीं खाते। महिलाएं भी इस पूजा में भाग नही लेती है।