नई दिल्ली: पूरी दुनिया में श्री कृष्ण जन्माष्टमी की तैयारी तेजी से है रही है। इस बार जन्माष्टमी 5 सितम्बर को मनाया जा रहा है। जन्माष्टमी इस बार बहुत ही शुभ योग में पड़ रही है । एक साथ तीन योग रोहिणी ,अष्टमी भी पड रही है । ऐसा योग पूरें 50 साल बाद पड़ा है जब रोहिणी नक्षत्र पूरें 24 घंटे रहेगा। आप यह बात हमेशा सोचते होगे कि आखिर श्री कृष्ण का जन्म भाद्रपद काल के रोहिणी नक्षत्र की अष्टमी में ही क्यों होता है। और किसी काल या नक्षत्र या दिन में क्यों नही पडता है। इस बारें में अधिक जानकारी हमारें पुराणो में मिलती है। जानिए इसके पीछे का कारण क्या है।
इस बारें में विस्तार से श्री भगवतपुराण के दसवें स्कन्ध में वर्णित है कि जब भगवान कृष्ण का जन्म होना था तब वह भाद्र काल के रोहिणी नक्षत्र के कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन हुए थे। इसके पीछे कारण है कि भाद्र काल का मतलब है कि कल्याणकारी, कृष्ण पक्ष का मतलब कि भगवान का नाम ही था, अष्टमी में होनें का मतलब की जो पक्ष बीच में यानि की सात दिन आगे और सात दिन पीछे और रोहिणी नक्षत्र में होने का मतलब है कि कृष्ण भगबान नें सोचा कि वह वासुदेव की दुसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ से जन्म नही ले सके तो उनके कम से कम रोहिणी नक्षत्र में पैदा होकर मां का नाम तो जुड जाएगा। अर्ध्य रात्रि को पैदा होने का मतलब है कि घोर अंधकार, अज्ञान रूही अंधकार के बीच डिव्य ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न करना।