खोई हुई वस्तु पानें के लिए
गई बहारे गरीब नेवाजू।
सरल सबल साहिब रघुराजू।।
शत्रु को मित्र बनाने के लिए
गरल सुधा रिपु करहि मिताई।
गोपद सिंधु अनल सितलाई।।
शत्रु को मित्र बनानें के लिए
वयरू न कर काहू सन कोई।
रामप्रताप विषमता खोई।।
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