नईदिल्ली: हिन्दू धर्म की पवित्र ग्रंथों में से एक है रामचरित मानस जिसे तुलसीदास जी ने लिखा। श्री राम चरित मानस अवधी भाषा में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा 16 वीं सदी में रचित एक महाकाव्य है। श्री रामचरित मानस भारतीय संस्कृति में एक विशेष स्थान रखता है। उत्तर भारत में रामायण के रूप में कई लोगों द्वारा प्रतिदिन पढ़ा जाता है। श्री रामचरित मानस में इस ग्रन्थ के नायक को एक महाशक्ति के रूप में दर्शाया गया है जबकि महर्षि वाल्मीकि कृत रामायण में श्री राम को एक मानव के रूप में दिखाया गया है। तुलसी के प्रभु राम सर्वशक्तिमान होते हुए भी मर्यादा पुरुषोत्तम हैं।
इस ग्रंथ में रामायण को अच्छी तरह से चौपाईयों के माध्यम से बताया गया है किस तरह राम का जीवन रहा, कैसे महापुरुष बनें। इसीलिए रामचरित मानस की हर एक चौपाई का मंत्र सिद्ध है जिन्हें सच्चे मन से पढ़नें से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। आपके अशुभ दिन चल रहे है। जिसके कारण आपको कई समस्याओं का सामना करना पड रहा है, तो इन मंत्रों के प्रभाव से आपके घर समृद्धि बनी रहेगी। यह मंत्र सिर्फ सुख के लिए ही नहा है बल्कि बारिश न होने पर, लक्ष्मी प्राप्ति के लिए हो या फिर ज्ञान प्राप्ति के लिए हो। इन मंत्रों का मनन करनें से सभी मनोकामनाएं पूरी होगी। जानिए रामायण के इन चैपाई मंत्रों के बारें में जिससे आपको रामायण कामधेनु की तरह मनोवांछित फल देती है।
रामचरित मानस में कुछ चौपाइयां ऐसी हैं जिनका विपत्तियों तथा संकट से बचाव और ऋद्धि-सिद्ध के लिए मंत्रोच्चारण के साथ पाठ किया जाता है। इन चौपाइयों को मंत्र की तरह विधि विधान पूर्वक एक सौ आठ बार हवन की सामग्री से सिद्ध किया जाता है। हवन चंदन के बुरादे, जौ, चावल, शुद्ध केसर, शुद्ध घी, तिल, शक्कर, अगर, तगर, कपूर नागर मोथा, पंचमेवा आदि के साथ निष्ठापूर्वक मंत्रोच्चार के साथ करें। इन चौपाई मंत्र को अधिक समझनें के लिए तुलसी दर्शन कवितावली, दोहावली, विनय पत्रिका, बरवै रामायण आदि ग्रंथों का अध्ययन जरुर करें।
ऋद्धि सिद्ध की प्राप्ति के लिए
इसके लिए रामायण के इस मंत्र का जाप करें जो इस प्रकार है-
साधक नाम जपहिं लय लाएं।
होहि सिद्धि अनिमादिक पाएं।।
परीक्षा में सफलता के लिए
जेहि पर कृपा करहिं जनुजानी।
कवि उर अजिर नचावहिं बानी।।
मोरि सुधारहिं सो सब भांती।
जासु कृपा नहिं कृपा अघाती।।
लक्ष्मी की प्राप्ति के लिए
जिमि सरिता सागर मंहु जाही।
जद्यपि ताहि कामना नाहीं।।
तिमि सुख संपत्ति बिनहि बोलाएं।
धर्मशील पहिं जहि सुभाएं।।
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