नई दिल्ली: नवरात्र के सातवे दिन मां दुर्गा के सातवें स्वरूप मां कालरात्रि की पूजा का विधान है। नवरात्र के सातवें दिन का काफी महत्व बताया गया है। इन देवी का रूप सभी देवियों से भंयकर है, लेकिन यह मां सब पर अपनी कृपा बरसाती है। इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है। नवरात्र का यह दिन तंत्र-मंत्र के लिए अच्छा माना जाता है। सप्तमी की रात्रि को ‘सिद्धियों’ की रात भी कहा जाता है।
हिंदू पुराणों में माना जाता है कि मां का रंग अंधकार के समान काला है। कालरात्रि ने अपने गले में में विद्युत की माला धारण करती हैं। इनके बाल खुले हुए हैं। साथ ही मां के एक हाथ में सिर है जिससे रक्त टपक रहा है। इनके तीन नेत्र हैं जो ब्रह्मांड की तरह गोल हैं, इनकी आंखों से अग्नि की वर्षा होती है। इनकी नासिका से श्वास, निःश्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। मां कालरात्रि गर्दभ यानि की गधा की सवारी करती हैं।
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गर्दभ जो सभी जीव-जन्तुओं में सबसे ज्यादा मेहनत और निर्भय होकर अपनी अधिष्ठात्री देवी कालरात्रि को लेकर इस संसार में विचरण करा रहा है। नवरात्र के सातवे दिन भक्त जनों के लिए देवी का द्वार खुल जाता है और भक्तगण पूजा स्थलों पर देवी के दर्शन हेतु पूजा स्थल पर जुटने लगते हैं। इस दिन तांत्रिकों के अनुसार मां को मदिरा का भोग भी लगाया जाता है।
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