तलाक का तरीका इस्लाम मे प्रतिबंधित होने के बाद फिर कब कैसे और क्यों मुस्लिमों मे प्रचलित हो गया...? हज़रत उमर जब ख़लीफ़ा थे तब मिस्र पहुंचने वाले कुछ मुस्लिमों ने वहाँ की स्त्रियों के सम्मुख विवाह के प्रस्ताव रखे। वे स्त्रियाँ मुस्लिमों से विवाह करने को इस शर्त पर तैयार हुईं कि पहले ये पुरुष अपनी पूर्व पत्नियों को प्रचलित अरबी तरीके "तीन तलाक" बोलकर तलाक दे दें, तभी वे उनसे विवाह करेंगी। उन पुरूषों ने तीन बार तलाक का उच्चारण अपनी पूर्व पत्नियों के लिए कर के मिस्र की उन स्त्रियों को विश्वास दिला दिया कि उन्होंने अपनी पूर्व पत्नियों को तलाक दे दिया है और मिस्र की स्त्रियों ने उनसे विवाह कर लिया ।
इन स्त्रियों को नहीं मालूम था कि इस्लाम में एक बैठक में तलाक की इस विधी पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है .... पर जब उन स्त्रियों को पता चला कि उनके पतियों के उनकी पूर्व पत्नियों से तलाक नहीं हुआ तो वे अपने साथ हुए इस धोखे की शिकायत लेकर ख़लीफ़ा हजरत उमर के पास गईं। पूरा मामला जानकर हज़रत उमर ने उन धोखेबाज़ पुरुषों पर बहुत क्रोध किया और एक बैठक मे दी गई तलाक को भी पूर्ण तलाक मानने का विधान फिर से इसलिए लागू कर दिया ताकि दोबारा से कोई पुरुष ऐसा धोखा किसी स्त्री के साथ न कर पाए।