एक बैठक मे तीन बार तलाक बोलकर पत्नी को छोड़ने तरीका बहुत पहले अरब मे प्रचलित था। तब लोग अपनी पत्नी को छोटी मोटी बातों पर महज़ मज़ा चखाने के लिए तलाक देकर छोड़ देते और फिर जब दिल चाहा उसी स्त्री से फिर विवाह कर लेते थे। ऐसी स्थिति में औरत की जिन्दगी हमेशा डांवाडोल रहती थी यानी तलाक़ की तलवार हमेशा सिर पर लटकी रहती थी।
इस्लाम ने एक बैठक में लताक करने की कुप्रथा को ख़त्म किया
इस्लाम ने सबसे पहले तो इस एक बैठक मे तलाक देने की कुप्रथा को खत्म किया, और तलाक की प्रक्रिया को तीन महीने लम्बा बनाया। ये अवधि इसलिए लंबी रखी गई ताकि पति अपने फ़ैसले पर फिर विचार कर सके। अक़्सर लोग आवेश में आकर तलाक दे देते थे फिर बाद में पछताते थे।
मेहर और हलाला से महिला को सुरक्षा प्रदान की गई
इस्लाम में तलाक की प्रक्रिया को जटिल बनाने और महिला को आर्थिकरुप से सुरक्षित करने के लिए मेहर की रकम तय की। इसके अलावा हलाला का विधान किया गया ताकि एक बार तलाक के बाद दोबारा विवाह लगभग नामुमकिन सा हो जाए और तलाक की सुविधा का ग़लत इस्तेमाल न हो सके।
इस्लाम के विद्वानों के अनुसार तलाक बहुत बड़ा पाप है। ख़ुदा का हुक्म है कि तलाक उसी स्थिति में होना चाहिये जब पति और पत्नी का साथ जीवन जीना एकदम असंभव हो जाए।
क्या है हलाला
शौहर द्वारा 'तलाक' लाक' 'तलाक' कह देने भर से तुरंत प्रभाव से पति और पत्नी का सम्बंध विच्छेद माना जाता था। लेकिन शौहर को गलती का अहसास होने पर पति-पत्नी के सम्बंधों को फिर से बहाल करने के मतलब को हलाला ' कहते हें जहाँ तलाकशुदा पत्नी एक गेर मर्द के साथ निकाह कर एक रात उसके साथ हमबिस्तर हो जिस्मानी रिश्ता कायम करने को मज़बूर होती है। उसके बाद नये शौहर से उसको फिर तलाक मिलता है और तब वह पुराने शौहर से फिर निकाह कर अपनी पुरानी जिंदगी में वापस आती है।