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श्रीयंत्र की पूजा का क्यों है सबसे ज्यादा महत्व

नईदिल्ली: हिंदू धर्म में यंत्रों को शुभ माना जाता है। यंत्र कई तरह के होते है, लेकिन सबसें ज्यादा चमत्कारिक और जल्दी असर दिखाने वाला सबसे अच्छा यंत्र श्रीयंत्र माना जाता है। कलियुग में श्रीयंत्र

India TV Lifestyle Desk
Updated on: September 23, 2015 23:29 IST
श्रीयंत्र की पूजा का...- India TV Hindi
श्रीयंत्र की पूजा का क्यों है सबसे ज्यादा महत्व

नईदिल्ली: हिंदू धर्म में यंत्रों को शुभ माना जाता है। यंत्र कई तरह के होते है, लेकिन सबसें ज्यादा चमत्कारिक और जल्दी असर दिखाने वाला सबसे अच्छा यंत्र श्रीयंत्र माना जाता है। कलियुग में श्रीयंत्र कामधेनु के समान माना जाता है। मान्यता है कि इसकी उपासना सिद्ध होने पर हर तरह की श्री यानि चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति होती है। इसलिए इसे श्रीयंत्र कहते हैं। श्री यंत्र की पूजा करनें से सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है। अगर इसकी ठीक ढंग और विधि-विधान सें की जाए तो आपको जल्द ही इसका फल मिलेंगा। वेदों के अनुसार श्री यंत्र में मां लक्ष्मी सहित 33 करोड़ देवी-देवता विराजमान है। जिनका सच्चें मन सें पूजा करनें पर जल्द ही प्रसन्न होगें। जानिए श्री यंत्र के महत्व के बारें में और इसकी उत्पत्ति कैसे हुई। वास्तुदोष निवारण में इस यंत्र का कोई सानी नहीं हैं, इसमें ब्रह्मांड की उत्पति और विकास का प्रदर्शन किया गया है। इस बारें में दुर्गा सप्तशती के एक श्लोक में कहा गया है-

अराधिता सैव नृणां भोगस्वर्गापवर्गछा।
इसका मतलब है कि श्री यंत्र की आराधना किए जाने पर आदि शक्ति मनुष्यों को सुख, भोग, स्वर्ग, अपवर्ग देती है। श्रीयंत्र की उत्पति  में एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है। कथा के अनुसार एक बार कैलाश मानसरोवर के पास आदि शंकराचार्य ने कठोर तप करके शिवजी को प्रसन्न किया। जब शिवजी ने वर मांगने को कहा, तो शंकराचार्य ने विश्व कल्याण का उपाय पूछा। शिवजी ने शंकराचार्य को साक्षात लक्ष्मी स्वरूप श्रीयंत्र व श्रीसूक्त के मंत्र दिए। श्रीयंत्र परम ब्रह्मा स्वरूपिणी आदि प्रकृतिमयी देवी भगवती महात्रिपुर सुंदरी का आराधना स्थल है, क्योंकि यह चक्र ही उनका निवास और रथ है। उनका सूक्ष्म शरीर व प्रतीक रूप है। श्रीयंत्र के बिना की गई राजराजेश्वरी, कामेश्वरी त्रिपुरसुंदरी की साधना पूरी सफल नहीं होती। त्रिपुरी सुंदरी के अधीन समस्त देवी-देवता इसी श्रीयंत्र में आसीन रहते हैं। त्रिपुर सुंदरी को शास्त्रों में विद्या, महाविद्या, परम विद्या के नाम से जाना जाता है। वामकेश्वर तंत्र में कहा गया है- सर्वदेवमयी विद्या। दुर्गा सप्तशती में भी कहा गया है- विद्यासी सा भगवती परमा हि देवी। जिनका मतलब है कि हे देवि तुम ही परम विद्या हो।

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