
नई दिल्ली: भरात में साल भर में कई तरह के बड़े त्यौहार मनाए जाते है। इन्ही त्यौहारों में गणेश चतुर्थी भी है। गणेश चतुर्थी भाद्र पद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस बार यह 17 सितंबर को है। इस त्यौहार को इतनें धूम-धाम से मनानें का कारण है इस दिन गणेश जी का जन्म दिन। इस दिन महिलाएं अपनें पुत्र के लिए व्रत रखती है। अपनी खबर में बतातें है कि किस तरह गणेश जी के जन्म दिन को क्यों मनाया जाता है गणेश चौथ का व्रत और त्यौहार और शुभ मुहुर्त।
गणेश पूजा करनें का शुभ मुहूर्त
शुभ चौघडिय़ा- प्रात: 6.30 से 8 बजे तक
चर चौघडिय़ा- 11 से 12.30 तक
पूजा का समय- दोपहर 12 से 2.45 तक
शाम के समय- 5.16 से 6.37 तक
भद्रा काल- सुबह 9 बजकर 11 मिनट से रात 10 बजकर 20 मिनट तक रहेगा लेकिन गणपति जी का जन्म हस्त नक्षत्र भद्राकाल में होने से यह गणेश जयंती पर मान्य नहीं होता।
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ऐसें करे गणेश जी की पूजा
इस दिन सुबह जल्दी नहा कर सोने, चांदी, बालू, मिट्टी या गोबर की प्रतिमा उसकी पूजा करें। पूजन के समय मूर्ति पर सिंदूर लगाएं फिर दूर्वा की 11 जोड़ा चढ़ाए और इन दस नामों को लें-
ऊं गणाधिपाय नमः
ऊं उमापुत्राय नमः
ऊं विघ्ननाशनाय नमः
ऊं विनायकाय नमः
ऊं ईशपुत्राय नमः
ऊं सर्वसिद्धिप्रदाय नमः
ऊं एकदन्ताय नमः
ऊं इभवक्त्राय नमः
ऊं मूषकवाहनाय नमः
ऊं कुमारगुरवे नमः
फिर षोडशोपचार करें। धूप, दीप, नैवेद्य, पान का पत्ता, लाल वस्त्र तथा पुष्पादि अर्पित करें। इसके बाद मीठे मालपुओं तथा 11 या 21 लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए।
इस पूजा में संपूर्ण शिव परिवार- शिव, गौरी, नंदी तथा कार्तिकेय सहित सभी की षोडषोपचार विधि से पूजा करनी चाहिए। पूजा के उपरांत सभी आवाहित देवी-देवताओं का विधि-विधानानुसार विसर्जन करना चाहिए परंतु लक्ष्मी जी व गणेश जी का नहीं करना चाहिए। गणेश प्रतिमा का विसर्जन करने के बाद उन्हें अपने यहां लक्ष्मी जी के साथ ही रहने का आमंत्रण करें। यदि कोई कर्मकांडी यह पूजा सम्पन्न करवा रहा है तो उसका आशीष प्राप्त करें। सामान्यत: तुलसी के पत्ते छोड़कर सभी पत्र- पुष्प गणेश प्रतिमा पर चढ़ाए जा सकते हैं।
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