नई दिल्ली: हर भारतीय के लिए यह दिन बहुत ही खास है होता है क्योंकि यही वह दिन होता है जब कोई हिंदू, मुश्लिम, सिख, ईसाई नहीं होता बल्कि भारतीय झंडा को हवा में लहराते हुए देखकर एक ही आवाज कान में गुंजती है कि ''हम सब भारतीय हैं''। अखंडता में समानता का प्रतीक भारत अपना 72वां स्वतंत्रता दिवस मना रहा है। लेकिन इस खास दिन को और खास बना सकते हैं जब आप उन महान लोगों के बारे में जाने जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना खून-पसीना एक कर दिया। आज हम उन महान शख्स का जिक्र करेंगे जिनके एक नारे ने पूरे देश को एक साथ कर दिया और आज भी उस पंक्ति को सुन कर हर भारतीय अपने आप को गौरवांवित महसूस करता है।
जवाहर लाल नेहरू का प्रसिद्ध भाषण ''ट्रीस्ट ओवर डेस्टिनी”
स्वतंत्रता दिवस 2018: जवाहर लाल नेहरु का वह पहला भाषण शायद ही कोई भूल सकता है, जब उन्होंने लाल किला से खड़ा होकर भारत की आजादी की घोषणा की और उन्होंने अपने भाषण में “ट्रीस्ट ओवर डेस्टिनी” शब्द का जिक्र किया।। यह वही खास दिन था 15 अगस्त, 1947। आपको बता दें कि भारत अपना 72वीं स्वतंत्रा दिवस मनाने जा रहा है। लेकिन इसके साथ ही यह बात भी मन में आता है कि आखिर क्यों इस दिन को स्वतंत्रता दिवस के लिए चुना गया? (Happy Independence Day 2018 WhatsApp Messages, Facebook Status:अपने दोस्तों को ऐसे दें स्वतंत्रता दिवस की बधाईयां )
स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूंगा
बाल गंगाधर तिलक ने यह पंक्ति 1917 में नासिक की भरी सभा में बोला था। जब वह अपने 6 साल के कारावास काट कर आएं तो उनका सबसे पहला नारा यही था। तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतन्त्रता सेनानी थे। आप भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। भारत में पूर्ण स्वराज की मांग उठाने वाले आप पहले नेता थे।
'भारत छोड़ो आन्दोलन' या 'अगस्त क्रान्ति भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन' की अन्तिम महान् लड़ाई थी, जिसने ब्रिटिश शासन की नींव को हिलाकर रख दिया। क्रिप्स मिशन के ख़ाली हाथ भारत से वापस जाने पर भारतीयों को अपनी छले जाने का अहसास हुआ। दूसरी ओर दूसरे विश्वयुद्ध के कारण परिस्थितियां अत्यधिक गम्भीर होती जा रही थीं। जापान सफलतापूर्वक सिंगापुर, मलाया और बर्मा पर क़ब्ज़ा कर भारत की ओर बढ़ने लगा, दूसरी ओर युद्ध के कारण तमाम वस्तुओं के दाम बेतहाश बढ़ रहे थे, जिससे अंग्रेज़ सत्ता के ख़िलाफ़ भारतीय जनमानस में असन्तोष व्याप्त होने लगा था। जापान के बढ़ते हुए प्रभुत्व को देखकर 5 जुलाई, 1942 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा "अंगेज़ों! भारत को जापान के लिए मत छोड़ो, बल्कि भारत को भारतीयों के लिए व्यवस्थित रूप से छोड़ जाओ।" (Independence Day 2018: इतनी आसान नहीं थी भारत की आजादी, जानिए स्वतंत्रता आंदोलन की पूरी कहानी और महत्व)
'दांडी मार्च' का प्रसिद्ध नारा
5 अप्रैल 1930 को महात्मा गांधी ने अपने समर्थकों के साथ नमक कानून तोड़ने के लिए दांडी पहुंचे थे। जिसके बाद 24 दिन तक चली इस यात्रा को समाप्त कर दिया गया था। बता दें, यह नमक की लड़ाई थी जिसके लिए उन्होंने एक ऐतिहासिक मार्च निकाला था। इस मार्च की शुरुआत 12 मार्च, 1930 में हुई थी. इस मार्च को 'दांडी मार्च' और 'नमक सत्याग्रह' के नाम से भी जाना जाता है।
तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा
"स्वतंत्रता संग्राम के मेरे साथियों! स्वतंत्रता बलिदान चाहती है। आपने आज़ादी के लिए बहुत त्याग किया है, किन्तु अभी प्राणों की आहुति देना शेष है। आज़ादी को आज अपने शीश फूल की तरह चढ़ा देने वाले पुजारियों की आवश्यकता है। ऐसे नौजवानों की आवश्यकता है, जो अपना सिर काट कर स्वाधीनता की देवी को भेंट चढ़ा सकें। तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दू़ंगा। खून भी एक दो बूंद नहीं इतना कि खून का एक महासागर तैयार हो जाये और उसमें में ब्रिटिश साम्राज्य को डूबो दूं।"
नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी 1897 को ओडिशा (तब के उड़ीसा) के कटक में हुआ था। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों से सुभाष चंद्र बोस सहमत नहीं थे। 'नेताजी' के नाम से मशहूर सुभाष चंद्र बोस ने भारत को आजादी दिलाने के मकसद से 21 अक्टूबर 1943 को 'आजाद हिंद सरकार' की स्थापना की और 'आजाद हिंद फ़ौज' का गठन किया। नेताजी अपनी आजाद हिंद फौज के साथ 4 जुलाई 1944 को बर्मा पहुंचे। यहीं पर उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा, 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' दिया। सुभाष चंद्र बोस के विचार बहुत क्रांतिकारी थे और उनकी बातें आज भी किसी के भी तन-मन में जोश भर सकती हैं।