रिपोर्ट में कहा गया, “अफगानिस्तान में, 1990 के दशक में प्रकाशित पहली कक्षा के पाठ्यपुस्तकों से महिलाएं लगभग नदारद थीं। 2001 के बाद से, उनकी उपस्थिति ज्यादा दिखने लगी लेकिन दब्बू और माओं, देखभाल करने वालों, बेटियों एवं बहनों जैसी घरेलू भूमिका में। उनका अधिकतर प्रतिनिधित्व उनके लिए केवल शिक्षण का विकल्प उपलब्ध दिखाकर किया गया।” इसमें कहा गया, “इसी तरह ईरान इस्लामी गणराज्य की 90 प्रतिशत प्राथमिक एवं माध्यमिक अनिवार्य शिक्षा पाठ्यपुस्तकों की समीक्षा में महिलाओं की केवल 37 प्रतिशत छवियां देखी गईं।
इनमें से आधी छवियों में महिलाओं को परिवार एवं शिक्षा से जुड़ा दिखाया गया, जबकि कार्यस्थल की छवियां सात प्रतिशत से भी कम थी। फारसी और विदेशी भाषा की 60 प्रतिशत, विज्ञान की 63 प्रतिशत और सामाजिक विज्ञान की 74 प्रतिशत किताबों में महिलाओं की कोई तस्वीर नहीं थी।” रिपोर्ट में महाराष्ट्र के पाठ्यपुस्तक उत्पादन एवं पाठ्यक्रम अनुसंधान ब्यूरो द्वारा 2019 में लैंगिक रूढ़िवादों को हटाने के लिए कई पाठ्यपुस्तक छवियों में सुधार का भी संज्ञान लिया गया।
इसमें कहा गया, “उदाहरण के लिए, दूसरी कक्षा की पाठ्यपुस्तकों में महिला और पुरुष दोनों घर के काम करते दिख रहे हैं, वहीं एक महिला डॉक्टर और पुरुष शेफ की भी तस्वीर थी। विद्यार्थियों से इन तस्वीरों पर गौर करने और इन पर बात करने के लिए कहा गया था।” ग्लोबल एजुकेशन मॉनीटरिंग रिपोर्ट (जीईएम रिपोर्ट) एक स्वतंत्र टीम बनाती है और इसे यूनेस्को ने प्रकाशित किया है। इसे शिक्षा पर सतत विकास लक्ष्य पूरा करने में हुई प्रगति की निगरानी का आधिकारिक आदेश प्राप्त है। इस रिपोर्ट में इटली, स्पेन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, मलेशिया, इंडोनेशिया, कोरिया, अमेरिका, चिली, मोरक्को, तुर्की और युगांडा में भी पाठ्यपुस्तकों में महिलाओं के साथ जुड़ी इन रूढ़ियों का उल्लेख है