नई दिल्ली। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) ने अंतिम वर्ष के विश्वविद्यालय परीक्षाओं को रद्द करने वाले राज्यों को चेतावनी देते हुए कहा है कि राज्यों को ऐसा करने की अनुमति नहीं है और आयोग के पास कार्रवाई करने की शक्ति है। राज्य विश्वविद्यालयों को संशोधित दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए कहते हुए यूजीसी ने कहा है कि राज्य कानूनी रूप से इसके दिशा-निर्देशों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, एचआरडी सचिव अमित खरे ने कहा है कि यूजीसी अधिनियम के अनुसार राज्य सरकारें यह निर्णय नहीं ले सकती हैं। स्कूली शिक्षा के अतिरिक्त, जो राज्य हायर एजुकेशन की वर्तमान सूची में हैं। यूजीसी और एआईसीटीई (अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद) के निर्देशों को लागू किया जाना है, यह अधिनियम में है।
दरअसल, हाल ही में दिल्ली सरकार ने राज्य के अंतर्गत सभी विश्वविद्यालयों की सभी परीक्षाएं रद्द करने का निर्देश दिया है जिसके बाद यूजीसी के ये प्रतिक्रिया आई है। अब तक पंजाब, महाराष्ट्र, ओडिशा, पश्चिम बंगाल सहित कई राज्यों ने पहले ही परीक्षाएं रद्द कर दी हैं। उन्होंने केंद्र को लिखा है कि वे परीक्षा आयोजित करने की इच्छा नहीं रखते हैं। विश्वविद्यालय परीक्षा रद्द करने वाले राज्यों में दिल्ली नवीनतम शामिल होने वाला है।
हालांकि, यूजीसी ने पहले राज्यों को सितंबर अंत तक ऑनलाइन या ऑफलाइन मोड में अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित करने का निर्देश दिया था। नियामक संस्था ने राज्यों से परीक्षाओं के संचालन पर संशोधित दिशानिर्देशों का पालन करने के लिए भी कहा है। इसके अलावा मध्य प्रदेश जिसने पहले परीक्षाओं को रद्द कर दिया था लेकिन अब यू-टर्न ले लिया है और कहा है कि अब यह परीक्षा आयोजित करेगा, जबकि राजस्थान, हरियाणा, जिन्होंने परीक्षा रद्द कर दी है उन्हें अभी नए यूजीसी के दिशानिर्देशों के अनुसार निर्णय लेना है।
द हिंदू के हवाले से एचआरडी सचिव ने कहा, "यदि बिना किसी मूल्यांकन के डिग्री प्रदान की जाती है, तो सोचिए भविष्य कैसा होगा। अगर अभी फाइनल टर्म के डिग्रियां एग्जाम के बिना दे दी जाती हैं तो, तो अगले टर्म का क्या होगा? यदि COVID एक वर्ष तक जारी रहता है, तो क्या हम वर्षों तक परीक्षा के बिना डिग्रियां देते रहेंगे?"
पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह ने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से आग्रह किया है कि वे एचआरडी मंत्रालय और यूजीसी को सलाह दें कि वे COVID-19 के बढ़ते मामलों को देखते हुए टर्मिनल कक्षाओं के लिए अनिवार्य परीक्षा आयोजित करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करें।