नई दिल्ली। स्पेन की मदद से अब भारतीय विश्वविद्यालयों के छात्र सूक्ष्म जीव विज्ञान पर गहन रिसर्च करेंगे। इस रिसर्च का उद्देश्य बच्चों में होने वाले रोगों पर अंकुश लगाना है। इसके साथ ही भारतीय छात्र स्पेन की मदद से प्रोबायोटिक किन्वित(फर्मेटेड) फूड भी विकसित करने जा रहे हैं। इस खोज का सीधा फायदा कुपोषण और डायरिया का शिकार होने वाले बच्चों को मिलेगा। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय महेंद्रगढ़ के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग को स्पेन की प्रोनैट, एस.सी. कंपनी द्वारा प्रायोजित शोध परियोजना प्राप्त हुई है।
इस संयुक्त परियोजना के तहत भारत में बच्चों में डायरिया की रोकथाम के लिए प्रोबायोटिक किन्वित फूड विकसित किए जायेंगे। विशेषज्ञ इस शोध के द्वारा डायरिया की रोकथाम के लिए विभिन्न तरीकों पर काम कर रहे हैं।विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने कहा, "हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय की यह अच्छी पहल है जिसके तहत शैक्षणिक संस्थान और वैज्ञानिक मिलकर कार्य करेंगे। इस परियोजना के सफल होने पर भारत को डायरिया से होने वाले नुकसान को कम करने में मदद मिलेगी।"प्रो. कुहाड़ ने जोर देकर कहा कि शैक्षणिक निजी कम्पनी की यह सहभागिता समाज के लिए अवश्य ही उपयोगी साबित होगी।
प्रोनैट, एस.सी. वर्ष 2003 में स्थापित एक कम्पनी है जो वर्तमान में पोषण और स्वास्थ्य संबंधी परियोजनाओं पर कार्य कर रही है। परियोजना के मुख्य अन्वेषक और हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के सूक्ष्मजीव विज्ञान विभाग के अध्यक्ष डॉ. गुंजन गोयल ने कहा, "इस परियोजना में भारतीय टीम डायरिया के प्रमुख जीवाणु की पहचान करके उनकी रोकथाम के लिए प्रोबायोटिक्स का मूल्यांकन करेंगे। इसके लिए विश्वविद्यालय ने इस कार्य हेतु सहयोगी कम्पनी के साथ एक अनुसंधान समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। ज्ञातव्य रहे कि भारत में डायरिया के कारण नवजात बच्चों की मृत्यु दर अधिक है। इस परियोजना के माध्यम से विश्वविद्यालय डायरिया की रोकथाम के लिए प्रयास करेंगे।"
डॉ. गुंजन गोयल ने इस परियोजना के विषय में बताया कि स्पेन की यह प्रतिष्ठित कंपनी इस परियोजना के अंतर्गत विश्वविद्यालय की मदद से भारत में डायरिया के लिए जिम्मेदार प्रमुख जीवाणु के लिए उपयुक्त इलाज खोजने की दिशा में कार्यरत है।इस परियोजना में भारतीय विश्वविद्यालय की भूमिकाए जीवाणु की खोज करना और उससे बचाव के लिए कंपनी द्वारा तैयार प्रोडक्ट की टेस्टिंग करना है। इस प्रक्रिया में आवश्यक सुधार भी भारत को ही सुझाने होंगे ताकि कारगर इलाज उपलब्ध कराया जा सके। इस परियोजना के लिए तीन वर्ष की अवधि निर्धारित की गई है