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महामारी बनी 'वरदान', हैदराबाद के नूरुद्दीन ने 33 साल बाद पास की 10वीं की परीक्षा

कोरना वायरस महामारी मोहम्मद नूरुद्दीन नाम के एक हैदराबादी शख्स के लिए 'वरदान' साबित हुई है जिन्होंने पिछले 33 सालों में बार-बार अपने प्रयासों में असफल होने के बाद आखिरकार अपनी 10वीं कक्षा की परीक्षा पास कर ली है।

Edited by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: August 01, 2020 8:44 IST
Mohammad Nooruddin, Mohammad Nooruddin Hyderabad, Mohammad Nooruddin Class 10- India TV Hindi
Image Source : ANI मोहम्मद नूरुद्दीन ने पिछले 33 सालों में बार-बार अपने प्रयासों में असफल होने के बाद आखिरकार अपनी 10वीं कक्षा की परीक्षा पास कर ली है।

हैदराबाद: कोरोना वायरस महामारी के कहर से पूरी दुनिया जूझ रही है और लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है। इस वायरस के चलते पूरी दुनिया में लाखों लोग अपनी जान गंवा चुके हैं और कई लाख अन्य बीमार अस्पतालों में पड़े हैं। हालांकि यह महामारी मोहम्मद नूरुद्दीन नाम के एक हैदराबादी शख्स के लिए 'वरदान' साबित हुई है जिन्होंने पिछले 33 सालों में बार-बार अपने प्रयासों में असफल होने के बाद आखिरकार अपनी 10वीं कक्षा की परीक्षा पास कर ली है।

सरकार ने परीक्षा लिए बिना ही किया पास

51 वर्षीय मोहम्मद नूरुद्दीन इस बार 10वीं कक्षा की परीक्षा को पास करने में कामयाब रहे हैं क्योंकि महामारी के चलते तेलंगाना सरकार ने परीक्षा लिए बिना ही सभी विद्यार्थियों को पास करा दिया है। मुशीराबाद इलाके में अंजुमन बॉयज हाई स्कूल के छात्र नूरुद्दीन सन 1987 में पहली बार माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र (SSC) परीक्षा में शामिल हुए थे। अन्य सभी विषयों में पास होने के बावजूद वह अंग्रेजी में सफल नहीं हो सके। उन्होंने कहा कि अंग्रेजी में उन्हें कोई ट्यूशन भी नहीं मिल पाई जिसकी वजह से वह इस विषय में कमजोर ही रह गए।

‘सिक्यॉरिटी गार्ड की नौकरी के लिए भी 10वीं पास मांगते थे’
नूरुद्दीन ने बताया, ‘चूंकि मैंने उर्दू माध्यम में अपनी पढ़ाई की है, इसलिए अंग्रेजी मेरी सबसे बड़ी कमजोरी रही है। हर साल मैंने परीक्षा में लिखा लेकिन इस विषय में पास होने के लिए 35 अंक (100 में से) हासिल न कर सका। हर बार मैं कम अंकों से चूक जाता था जैसे कि मुझे या तो 32 मिलते थे या 33 लेकिन मैंने हार न मानने का फैसला लिया।’ उन्होंने कहा कि सिक्यॉरिटी गार्ड की नौकरी के लिए भी 10वीं पास की क्वॉलिफिकेशन मांगी जाती थी, जिसकी वजह से मैं हर साल एग्जाम देता था। उन्होंने कहा कि तकदीर से मुझे मार्कशीट के बगैर ही गार्ड की नौकरी मिल गई और आज मेरी सैलरी 7,000 रुपये है।

‘मेरी बेटी ने काफी मदद की’
यह साल भी उनके लिए कठिन रहा क्योंकि एक नियमित उम्मीदवार के रूप में वह परीक्षा में बैठने के लिए आखिरी समय तक फीस चुकाने में असमर्थ रहे और उन्हें खुली श्रेणी में आवेदन करना पड़ा। इस बार उन्होंने फिर से 6 विषयों के पेपर दिए। 4 बच्चों के पिता नूरुद्दीन ने कहा, ‘मैंने कड़ी मेहनत की। अंग्रेजी माध्यम से बी.कॉम करने वाली मेरी बेटी ने मेरी मदद की।’ हालांकि कोविड के चलते इस बार परीक्षाएं नहीं ली जा सकीं और सरकार ने सभी उम्मीदवारों को पास कराने का फैसला लिया। नूरुद्दीन खुश हैं कि आखिरकार उन्होंने SSC की परीक्षा पास कर ली और वह आगे भी अपनी पढ़ाई जारी रखना चाहते हैं। (IANS और ANI इनपुट्स के साथ)

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