तमाम सियासी उठा पटक और तीन तलाक की तालीम के बीच 2017 में एक महत्त्वपूर्ण जानकारी हमारे सामने से निकल गई और हमारा ध्यान ही नहीं गया। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी (Centre for Monitoring Indian Economy) की रिपोर्ट के अनुसार 2017 के पहले 4 महीने में वर्क प्लेस पर जहां 9 लाख पुरुषों को नए रोजगार अवसर मिले, वहीं 24 लाख महिलाओं ने अपनी नौकरी छोड़ दी।
हर क्षेत्र में बढ़ रही हैं महिलाएं, तो फिर कमी कहां है?
आज महिलाओं को हर क्षेत्र में रोजगार मिल रहे हैं। एड एजेंसी हो या स्टार्ट अप हो, कंसट्रक्शन साइट से लेकर फील्ड वर्क में, दुकानों से लेकर रेस्टॉरेंट तक, स्कूलों और आंगनवाडियों में और यहां तक कि एरोप्लेन या टैक्सी चलाने तक में महिलाओं को रोजगार मिल रहे हैं।
क्या कहते हैं आंकडे?
पर फिर भी कार्यस्थल पर महिलाओं की संख्या कम होती जा रही है। 2004-2005 और 2011-2012 के आंकडों के अनुसार करीब 1 करोड़ 96 लाख (1,96,00,000) महिलाओं ने नौकरी छोड़ दी।भारत में केवल 27% काम-काजी महिलाएं हैं। पिछले दो दशकों में भारत में काम-काजी महिलाओं की संख्या 35% से 27% हो गई है।
आखिर कमी कहां है?
हमारे पुरुष प्रधान समाज में यह अपेक्षा की जाती है कि एक पुरुष पैसे कमाने के लिए नौकरी करे, जबकि एक महिला को अपने घर में मौजूद पुरुष यानि उसके पिता, भाई या पति से नौकरी की अनुमति लेनी पड़ती है। कभी कभी तो पंचायत से भी अनुमति लेने की जरूरत पड़ जाती है।
अंजाम क्या होता है?
जब महिलाओं को काम करने की अनुमति भी मिलती है तो उनके सामने कई शर्तें रखी जाती हैं। क्या उनके काम करने का समय तय है जिससे कि वे घर आकर समय पर खाना बना सकें? ऑफिस की दूरी कितनी है? सुरक्षित यातायात की सुविधा है या नहीं? सुरक्षा का मुद्दा इसमें सबसे पहले ऊपर किया जाता है। इन सारी बंदिशों के कारण महिलाएं मजबूरन काम छोड़ कर घर पर बैठ जाती हैं।
तेजी से बढ़ने वाले सारे क्षेत्रों में पुरुषों का है बोल-बाला!
अफसोस की बात है कि टेलीकोम, बैंकिंग और कोर जैसे तेजी से बढ़ते हुए क्षेत्रों में कंपनियां ज्यादातर पुरुषों को काम पर रखती हैं। टेलीकोम में 83.84%, बैंकिंग में 78.79% और कोर सेक्टर में74.75% पुरुष ही हैं। इन कारणों से महिलाएं आपात के वक्त ही घरों से निकलती हैं और उनकी कमाई केवल जरूरतें पूरा करने तक ही सिमट कर रह जाती है।