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झारखंड में बीजेपी को क्यों मिली करारी हार, आखिर कहां हुई गड़बड़ी? यहां प्वाइंट्स में समझें

झारखंड में बीजेपी को जेएमएम की अगुवाई वाले इंडिया गठबंधन के हाथों करारी हार मिली है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर बीजेपी क्यों अपने मुद्दों को राज्य की जनता नहीं समझा सकी।

Edited By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published : Nov 23, 2024 20:52 IST, Updated : Nov 23, 2024 20:52 IST
झारखंड बीजेपी
Image Source : PTI झारखंड बीजेपी

भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अगुवाई वाली एनडीए गठबंधन को झारखंड की सत्ता में विराजमान झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेतृत्व वाले गठबंधन के हाथों से करारी हार मिली है। हालांकि एनडीए ने जेएमएम के हाथों से सत्ता छीनने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक दी लेकिन उसे अंतत: हार का सामना करना पड़ा। इस हार से निराश बीजेपी नेता व कार्यकर्ता यही सोच रहे हैं कि आखिर गड़बड़ी कहां हुई। राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा जैसे टॉप बीजेपी लीडरों ने जोरदार तरीके से प्रचार किया, फिर भी उसे शर्मनाक हार क्यों मिली।

भाजपा नेताओं ने करीबन 200 जनसभा की

एनडीए ने किसी को भी मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया, क्योंकि उसका अभियान मुख्य रूप से ‘बांग्लादेश से घुसपैठ’ और हेमंत सोरेन सरकार के ‘भ्रष्टाचार’ पर केंद्रित था। भाजपा नेताओं ने लगभग 200 जनसभाओं को संबोधित किया जिनमें शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लगभग 2 दर्जन जनसभाएं शामिल थीं।

बीजेपी को महज 21 सीटों पर मिली जीत

इस विधानसभा चुनाव में एनडीए जिन 81 सीट पर चुनाव लड़ी उनमें से बीजेपी ने 68 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे जबकि एनडीए के सहयोगी दल आजसू ने 10 और JD(U)ने दो और LJP (R) ने एक सीट पर चुनाव लड़ा। बीजेपी 68 सीट में से 21 सीटों पर जीत हासिल कर सकी जबकि ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) पार्टी  10 सीट में से  महज 1 सीट ही जीत सकी है। जबकि JD(U) ने 2 सीटों में से 1 और LJP (R) ने एक सीट पर जीत हासिल की है। वहीं, ‘एग्जिट पोल’ के विपरीत हेमंत सोरेन की झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) ने जिन 43 सीट पर चुनाव लड़ा उनमें से 34 सीट पर बड़ी जीत हासिल की है। साथ ही कांग्रेस ने कुल 16 सीटों पर जीत हासिल की है।

राजनीतिक पंडितों की मानें तो एनडीए के इस चुनाव में हारने के कई फैक्टर हैं:

  • चुनाव में एक आदिवासी मुख्यमंत्री का चेहरा सामने न करना पार्टी को खासा महंगा पड़ा। 
  • वहीं, बीजेपी के स्थानीय नेताओं को लगा कि पूरा शो ‘बाहर से आए दो नेताओं’ द्वारा चलाया जा रहा और प्रदेश बीजेपी ने अपने लोगों को नजरअंदाज करके दूसरे पार्टी से आए नेताओं को टिकट दिया। इसी कारण, भाजपा के मौजूदा विधायक केदार हाजरा पूर्व मंत्री लुईस मरांडी के साथ चुनाव से ठीक पहले पार्टी नेताओं पर उदासीनता का आरोप लगाते हुए JMM में शामिल हो गए। इससे पार्टी का मनोबल कम हुआ।
  • इसके अलावा, बीजेपी अपने पूरे अभियान के दौरान जनता से जुड़े जमीनी मुद्दों को उठाने में पूरी तरह फेल रही और पार्टी का अभियान राष्ट्रीय मुद्दों और ‘घुसपैठ’ पर केंद्रित रखा जिससे ग्रामीण जनता नहीं जुड़ सकी।
  • इसके अलावा, जेएमएम के पारंपरिक वोट बैंक (मुस्लिम, ईसाई और आदिवासी) में महिलाओं को ‘मंईयां सम्मान योजना’ जैसी योजनाओं के जरिये जोड़ा गया। ‘मंईयां सम्मान योजना’ के तहत 18-50 वर्ष की महिलाओं को मौजूदा सहायता राशि 1000 रुपये के बजाय 2,500 रुपये प्रति माह करने का वादा किया गया था। जानकारी दे दें कि झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में से 68 पर महिला वोटर्स की संख्या पुरुषों से ज्यादा है। 

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