Tuesday, October 22, 2024
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Pakur Assembly Seat: 20 नवंबर को होगी वोटिंग, भाजपा या कांग्रेस, कौन जीतेगा पाकुड़ सीट?

झारखंड में दो चरणों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। पाकुड़ विधानसभा सीट पर दूसरे चरण में यानी 20 नवंबर को वोटिंग होगी।

Edited By: Kajal Kumari @lallkajal
Published on: October 22, 2024 14:18 IST
pakur assembly seat- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO पाकुड़ विधानसभा सीट

Pakur Assembly Seat: झारखंड के 81 विधानसभा क्षेत्रों में पाकुड़ राजमहल लोकसभा क्षेत्र से जुड़ा है। आजादी के बाद से ही दुनिया भर में काला पत्थर के लिए मशहूर पाकुड़ विधानसभा क्षेत्र को कांग्रेस का मजबूत गढ़ समझा जाता रहा है। हाल के दिनो मे पश्चिम बंगाल की सीमा से सटे इस क्षेत्र में लम्बे अर्से से बीजेपी बंगाल देशी घुसपैठ के मुद्दे को उछाल कर इस सीट पर भगवा ध्वज फहराने का जी-तोड़ मेहनत कर रही है। चुनाव आयोग के अनुसार पाकुड़ में 20 नवंबर को दूसरे चरण में वोट डाले जाएंगे। पाकुड़ विधानसभा सीट से अजहर इस्लाम आजसू के उम्मीदवार होंगे।

चर्चा में है पाकुड़ सीट

इन दिनों पाकुड़ विधानसभा सीट बेहद चर्चा में हैं. क्योंकि पाकुड़ सीट एक तरह से आलमगीर का गढ़ माना जाता है। पाकुड़ विधानसभा सीट से इस बार एक ही परिवार से तीन लोगों ने दावेदारी की है, जिसमें आलमगीर आलम के अलावा उनके बेटे तनवीर आलम और पत्नी निशत आलम ने भी पाकुड़ से टिकट के लिए आवेदन किया है।

 

प्रमुख तारीखें

नामांकन 22 अक्टूबर
नामांकन दाखिल करने की अंतिम तारीख- 29 अक्टूबर
नामांकन पत्रों की जांच- 30 अक्टूबर
नामांकन वापस लेने की अंतिम तिथि- 1 नवंबर
मतदान की तारीख- 20 नवंबर
मतगणना की तारीख- 23 नवंबर

कब किसने जीती पाकुड़ सीट

 

1952 से 2019 के बीच हुए विधानसभा चुनाव में नौ बार कांग्रेस, दो बार भाजपा, एक बार झारखंड पार्टी, एक बार जनता पार्टी, एक बार जनसंघ, एक बार सीपीएम, एक बार झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रत्याशी ने जीत हासिल की है। साल 1990 और 1995 में भाजपा को जीत मिली थी। इसके बाद ज्यादातर कांग्रेस और एक बार झामुमो को जीत मिली है।

मुस्लिम बहुल है पाकुड़ 

 
एक रिपोर्ट के आधार पर इस विधानसभा क्षेत्र में आदिवासी संताल मतदाताओं की आबादी लगभग 25 प्रतिशत और अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय की आबादी लगभग 40 प्रतिशत है। जो यहां के चुनाव परिणाम को प्रभावित करते रहे हैं। इस तरह लगभग 65 प्रतिशत मतदाताओं के गोलबंदी की वजह से इस क्षेत्र में सदैव कांग्रेस का पलड़ा भारी रहा है। हालांकि आदिवासी और अन्य गैर मुस्लिम मतदाताओं ने जब-जब एकजुटता दिखाई। तब-तब इस से बीजेपी या अन्य दलों के प्रत्याशियों ने जीत दर्ज की।

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