श्रीनगर : दीपावली का त्योहार नजदीक आने के साथ ही एक कश्मीरी मुस्लिम परिवार कई हफ्तों से मिट्टी के दीये बनाने में व्यस्त है। श्रीनगर के निशात इलाके में रहने वाले उमर अपने पूरे परिवार के साथ दीपावली के दीयों को बनाने और उन्हें सजाने में व्यस्त दिख रहे हैं। दीपावली पर इस्तेमाल होने वाले इन दीयों को उमर एक अलग और ख़ास अंदाज़ से बना रहे हैं। उमर ने अपने परिवार के साथ कश्मीर घाटी की पारंपरिक चमकदार मिट्टी की कला को बचाने के लिए काम शुरू किया है। दीपावली पर पिछले साल उमर कुमार ने 15 हजार दीये बनाए थे। इस बार उमर को 20 हजार से ज्यादा दीयों के ऑर्डर मिलने की उम्मीद है। उमर ने एक अलग और ख़ास अंदाज़ से दीये डिजाईन किए हैं।
नौकरी नहीं मिलने पर शुरू किया काम
दीपावली का त्योहार जैसे-जैसे करीब आ रहा है वैसे ही श्रीनगर के निशात इलाके में रहने वाले उमर भी व्यस्त होते जा रहे हैं। उमर इन दिनों अपने पूरे परिवार के साथ दिवाली के दीयों को बनाने और उनके रंगों से सजाने और संवारने के काम में व्यस्त दिख रहे हैं। उमर ने अब तक 4 हज़ार से अधिक दीये तैयार कर लिए हैं। ये अलग-अलग किस्म और अलग-अलग साइज के दीये हैं। दिवाली पर इस्तेमाल होने वाले इन दीयों को उमर ने एक अलग और ख़ास अंदाज़ से डिजाईन किया है। उमर कॉमर्स ग्रेजुएट स्टूडेंट रहा है, लेकिन नौकरी न मिलने के कारण उसने अपने पिता के साथ मिट्टी के बर्तन बनाने का काम शुरू किया। इस काम से न सिर्फ उमर बल्कि उसके पिता भी बेहद खुश नज़र आ रहे हैं।
लुप्त हो रहा मिट्टी के बर्तन का कारोबार
इंडिया टीवी से बात करते हुए उमर ने अपनी ख़ुशी का इज़हार किया। उमर ने बताया कि दीपावली पर मुझे एक बुहत बड़ी सौगात मिली है। मैं चाहता हूं कि दीपावली पर हर एक आदमी इस दीये को जलाए। उमर कुमार ही नहीं बल्कि उनके भाई और पिता भी इस काम से बेहद खुश हैं। उमर का परिवार पिछले 40 सालों से मिट्टी के बर्तन बनाने का काम कर रहा है। पिछले साल से उमर ने खुद को एक अलग क्षेत्र में ले जाने के लिए चमचमाते मिट्टी के बर्तनों को पुनर्जीवित करने का काम शुरू किया। आपको बता दें कि कभी कश्मीर में कई अन्य कलाओं की तरह ही प्रसिद्ध चमकीले मिट्टी के बर्तन का कारोबार धीरे-धीरे मर रहा है। क्योंकि घाटी में नई पीढ़ी के बहुत से लोग अपने हाथ गंदे करने को तैयार नहीं हैं। वहीं अब दीपावली पर दीयों के इस बड़े ऑर्डर से ये उमीद जाग उठी है कि दीपावली पर बनने वाले दीयों की रोशनी से कश्मीर की इस सदियों पुरानी कला को फिर से एक नई पहचान मिलेगी।
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