श्रीनगर: जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 निरस्त किए जाने के बाद काफी बदलाव हो रहे हैं। घाटी इस समय केंद्र शासित प्रदेश है और इस समय उपराज्यपाल का शासन के तहत कामकाज हो रहा है। घाटी में इस समय पवित्र अमरनाथ यात्रा भी चल रही है और इसी बीच मुस्लिमों का मुहर्रम महीना भी चल रहा है, जिसे शहादत का महीना कहा जाता है। इस बीच श्रीनगर में गुरुवार (27 जुलाई) को 8वीं और शनिवार 29 जुलाई को 10वीं मुहर्रम का जुलुस निकाला गया।
34 साल बाद निकाला गया जुलूस
यह जुलूस श्रीनगर में 34 साल बाद निकाला गया। दरअसल घाटी में 1989 के बाद बिगड़े हालातों की वजह से इस जुलूस को निकालने की इजाजत नहीं मिलती थी, लेकिन इस बार एलजी मनोज सिन्हा ने कड़ी सुरक्षा व्यवस्था के बीच इसे निकालने की अनुमति दी। इसके साथ ही वह खुद भी इस जुलूस में शामिल हुए और इस दौरान उन्होंने शिया शोक मनाने वालों से मुलाकात की। इस दौरान एलजी ने कहा, "हजरत इमाम हुसैन (एएस) और कर्बला के शहीदों के बलिदान और शिया समुदाय की भावना का सम्मान करती है।"
साल 1989 में लगा दी गई थी रोक
बात दें कि 34 साल के प्रतिबंध के बाद हजारों शिया मातमदारों को पारंपरिक गुरु बाजार-डलगेट मार्ग के माध्यम से 8वीं मुहर्रम जुलूस निकालने की अनुमति दी गई थी। 1989 में कश्मीर में अधिकारियों की ओर से प्रतिबंध लगाए जाने के बाद 34 वर्षों में पहली बार गुरुवार को जुलूस आयोजित किया गया। उपराज्यपाल कार्यालय की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि "मैं कर्बला के शहीदों को नमन करता हूं और हजरत इमाम हुसैन (एएस) के बलिदान और उनके आदर्शों को याद करता हूं।"