श्रीनगर: श्रीनगर के ऐतिहासिक हब्बा कदल पुल को स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत रिडिजाइन कर उसे राज्य की जनता को समर्पित किया गया है। जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने किया इस पुल का उद्घाटन किया। हब्बा कदल पुल की सूरत बदलने से आम लोगों में बेहद खुशी हैं और लोगों ने उम्मीद जताई कि यह पुल अतीत अच्छे दौर को वापस लाने में मददगार साबित होगा। इस पुल से लाखों कश्मीरी पंडितों की यादें जुड़ी हुई हैं।
1990 के दशक तक कश्मीरी पंडितों का हब माना जाता था यह पुल
1500 ईस्वी में श्रीनगर के इस ऐतिहासिक हब्बा कदल पुल का निर्माण हुआ था। 1990 के दशक तक हब्बा कादल कश्मीरी पंडितों का हब माना जाता था। यहां मुस्लिम और कश्मीरी पंडित एक साथ रहा करते थे। इस पुल और इसके आस-पास की गलियों में लाखों कश्मीरी पंडितों का बचपन बीता है। लेकिन 1990 में आतंक का दौर शुरू होने के साथी कश्मीरी पंडित अपना सब कुछ छोड़कर यहां से पलायन करके गए। फिर वक्त बीतने के साथ-साथ अतीत की यादें एक हिस्सा बन गईं। 33 साल बीत जाने के बाद भी आज भी यहां के मुस्लिम लोगों के दिल और दिमाग में उनकी यादें बसी हुई है। यहां सुबह-शाम मंदिरों में बजाने वाली घंटियां और मस्जिद की अजान आज भी यहां के उन दिनो की यादों को बयां कर रहे हैं। यहां एक तरफ तो दूसरी तरफ मंदिर.. आज भी कश्मीरी पंडितों के न होने का एहसास यहां के लोगों को दिला रहे हैं।
कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों का साथ बीता था बचपन
इंडिया टीवी से बात करते हुए यहां के मुस्लिम लोगों ने कहा, यह ऐतिहासिक पल है। यहां कश्मीरी पंडितों और मुसलमानों का बचपन एक साथ बीता है। यहां मंदिर मस्जिद एक साथ है। कोई भेदभाव आपस में नहीं था, लेकिन 1990 में खराब हालात के कारण कश्मीरी पंडित यहां से चले गए, लेकिन उनकी यादें और वह बीता हुआ कल हम आज तक नहीं भूले हैं। इस ऐतिहासिक पुल को नए डिजाइन से रिनोवेट किया गया है। यह बहुत खुशी की बात है कि इससे टूरिज्म बढ़ेगा। कारोबार में तरक्की होगी, लेकिन हम चाहते हैं कि कश्मीरी पंडित भी अपने घरों को लौटें हम दिल खोलकर उनका स्वागत करेंगे।
धीरे-धीरे बदल रहे हैं हालात
वहीं कुछ लोगों का मानना है कि आज जैसे हम हब्बा कदल को एक नई डिजाइन और एक नए लुक में देखकर खुश हो रहे हैं। वह लोग भी बहुत खुश होंगे, जिनका बचपन इस इलाके में गुजरा है। गुलाम रसूल ने इंडिया टीवी से बात करते हुए कहा कि कश्मीरी पंडितों की कमी बेहद महसूस हो रही है। वह पढ़े-लिखे और अच्छे पोस्ट पर तैनात थे लेकिन हवा के एक झोंके ने उन्हें हमसे दूर कर दिया। हम चाह कर भी कुछ नहीं कर सके लेकिन अब हालात बदल रहे हैं। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो रहा है। हमें उम्मीद है कि यह पुल उन सभी दूरियों को खत्म करेगा और कश्मीरी पंडित और यहां के मुस्लिम फिर एक बार साथ साथ होंगे।
2 करोड़ की लागत से किया रिडिजाइन
स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का ध्यान शहर के नीचे इलाकों पर केंद्रित है साथ ही जम्मू-कश्मीर सरकार ने इस पुल को जीरो ब्रिज, श्रीनगर की तर्ज पर 2 करोड़ रुपये की लागत से डिजाइन किया है। यह ब्रिज एक सार्वजनिक स्थान बन गया है, इस पुल पर दो कॉफी की दुकान भी बन गई है, जो आगन्तुकों के लिए आराम और सुविधा प्रदान करेगी। अधिकारियों का अनुमान है कि यह एक पर्यटन स्थल बन जाएगा, जो विभिन्न राज्यों और देशों के पर्यटन को कश्मीर के आकर्षण का अनुभव करने के लिए प्रेरित करेगा और, श्रीनगर के केंद्र में एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में काम करेगा।
वर्षों से बंद पड़े ऐतिहासिक पुल को खोला गया
आपको बता दें कि श्रीनगर में सात पुल है जिनमें यह दूसरा ऐतिहासिक पुल माना जाता है। इस पुल को 1500 ईस्वी में सुलतान हबीब शाह के नाम से तामीर किया गया है और इस पुल का नाम पहले हबीब पुल हुआ करता था, लेकिन बाद में इसका नाम अब्बा कदल पड़ गया। इस ब्रिज का इतिहास यह भी है कि यहां सबसे ज्यादा कश्मीरी पंडित रहा करते थे। नदी पर बने इस पुल के दोनों तरफ कहीं मस्जिद और मंदिर आज भी मौजूद हैं। कश्मीर पंडितों के बिना अधूरा और वर्षों से बंद पड़े इस पुल को दोबारा खूबसूरत बनाकर इसकी अहमियत को बहाल किया जा रहा है। यहां के लोगों को उम्मीद है कि वह दिन अब दूर नहीं जब फिर से कश्मीरी पंडित और मुस्लिम लोग एक साथ इस ऐतिहासिक पुल पर नजर आएंगे।