Monday, December 23, 2024
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जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर विरोध तेज, प्रदर्शन में CM उमर अब्दुल्ला के बेटे भी हुए शामिल; जानें सबकुछ

सीएम उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर रविवार को सैकड़ों छात्र और कई राजनीतिक नेता एकत्र हुए और आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग की, जिसमें मुख्यमंत्री के बेटे ने भी हिस्सा लिया।

Edited By: Malaika Imam @MalaikaImam1
Published : Dec 23, 2024 17:20 IST, Updated : Dec 23, 2024 17:26 IST
जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर विरोध प्रदर्शन
Image Source : SOCIAL MEDIA जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर विरोध प्रदर्शन

जम्मू-कश्मीर में आरक्षण नीति को लेकर विरोध प्रदर्शन तेज हो गया है। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के आवास के बाहर रविवार को सैकड़ों छात्र और कई राजनीतिक नेता एकत्र हुए और राज्य सरकार से आरक्षण नीति की समीक्षा की मांग की। यह नीति इस साल के शुरू में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन ने लागू किया था।

विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय कांग्रेस (NC) के सदस्य और सांसद रुहुल्लाह मेहदी भी शामिल हुए। उन्होंने इस विरोध को समर्थन दिया और सोशल मीडिया हैंडल 'X' पर एक पोस्ट में रविवार को उन्होंने गुपकर रोड पर स्थित मुख्यमंत्री के कार्यालय के बाहर आरक्षण नीति में तर्कसंगतता की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन करने की अपील की थी। इसके साथ ही पीडीपी नेता वहीद परा, इल्तिजा मुफ्ती और अवामी एकता पार्टी के नेता शेख खुरशी (इंजीनियर राशिद के भाई) भी इस विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए। इस विरोध प्रदर्शन में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला के बेटे भी शामिल हुए और रुहुल्लाह मेहदी मेहदी एवं छात्रों के साथ खड़े नजर आएं।

क्या है यह आरक्षण नीति?

इस साल की शुरुआत में विधानसभा चुनाव से पहले उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा पेश की गई थी, जिसमें नौकरियों और दाखिलों में सामान्य वर्ग के लिए आरक्षण प्रतिशत कम कर दिया गया और आरक्षित श्रेणियों के लिए आरक्षण प्रतिशत बढ़ा दिया गया। इसके अलावा अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 8 प्रतिशत आरक्षण दिया गया और सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग आयोग (SEBC) की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी सूची में 15 नई जातियों को जोड़ा गया। इस नीति का संसद में भी अनुमोदन किया गया था, जिसमें जातीय जनजाति, पड्डारी जाति, पद्दारी जनजातिस कोलिस और गड्डा ब्राह्मणों के लिए आरक्षण को मंजूरी दी गई थी।

आरक्षण नीति के खिलाफ विरोध

यह आरक्षण नीति राजनीतिक नेताओं और छात्रों के बीच गुस्से का कारण बन गई। घाटी भर में इसकी समीक्षा और पलटने की मांग उठने लगी। सांसद रुहुल्लाह मेहदी ने नवंबर में छात्रों से वादा किया था कि वह इस विरोध में उनके साथ शामिल होंगे। उन्होंने कहा था कि नई सरकार इस नीति पर कोई कदम नहीं उठा रही, क्योंकि चुनावी सरकार और उपराज्यपाल के कार्यालय के बीच अधिकारों का बंटवारा स्पष्ट नहीं है। मेहदी ने कहा, "मुझे बताया गया है कि सरकार और अन्य कार्यालयों के बीच कामकाजी नियमों के बंटवारे को लेकर कुछ भ्रम है और यह विषय उनमें से एक है। मुझे यकीन दिलाया गया है कि सरकार इस नीति को जल्द ही सुधारने का निर्णय लेगी।"

सरकार ने बनाई समीक्षा समिति

10 दिसंबर को जम्मू और कश्मीर सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित की। इस समिति में स्वास्थ्य मंत्री सकीना इत्तू, वन मंत्री जावेद अहमद राणा और विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री सतीश शर्मा को शामिल किया गया। हालांकि, समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपने के लिए कोई समय सीमा निर्धारित नहीं की गई है। इसके दो दिन बाद जम्मू और कश्मीर हाई कोर्ट ने आरक्षण नीति को चुनौती देने वाली एक नई याचिका की सुनवाई के दौरान सरकार से तीन सप्ताह के भीतर इस पर जवाब मांगा। हाई कोर्ट ने पहले से चल रही याचिकाओं को नई याचिका के साथ जोड़ दिया है।

सीएम उमर अब्दुल्ला का बयान

मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने रविवार को कहा कि उनकी सरकार ने आरक्षण नीति की समीक्षा के लिए समिति बनाई है और वह इस मामले में अदालत के आदेश का पालन करेगी। उन्होंने कहा, "मैं समझता हूं कि आरक्षण नीति को लेकर जो भावनाएं उभर रही हैं, वह जायज़ हैं। मेरी पार्टी JKNC पूरी तरह से अपनी घोषणाओं की समीक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है। इसी प्रतिबद्धता के तहत कैबिनेट उप-समिति बनाई गई है, जो सभी पक्षों से बातचीत करके इस मुद्दे पर आगे बढ़ेगी।" उन्होंने यह भी कहा कि यह नीति हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है और उनकी सरकार किसी भी अंतिम कानूनी निर्णय का पालन करेगी।

सीएम ने कहा, "मुझे पता चला है कि श्रीनगर में आरक्षण नीति के खिलाफ एक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन की योजना बनाई जा रही है। शांतिपूर्ण विरोध लोकतांत्रिक अधिकार है और मैं इसे किसी भी रूप में नकारने वाला नहीं हूं, लेकिन कृपया यह जानकर प्रदर्शन करें कि इस मुद्दे को नजरअंदाज या दबाया नहीं गया है। सभी पक्षों को सुना जाएगा और उचित प्रक्रिया के बाद एक निष्पक्ष निर्णय लिया जाएगा।"

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