लखनऊ: उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव के दौरान "80 बनाम 20 प्रतिशत" पर छिड़ी बहस से इतर चुनाव के बाद के एक सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) को आधे से अधिक हिंदू मतदाताओं का समर्थन मिला, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) को दो तिहाई मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन मिला। उत्तर प्रदेश में सीएसडीएस-लोकनीति के सर्वेक्षण में एक तथ्य यह भी सामने आया कि भाजपा ने 2017 की तुलना में मुस्लिम मतदाताओं के बीच अपने समर्थन में मामूली वृद्धि की जो बसपा और कांग्रेस को मिले मत प्रतिशत से अधिक रही।
सर्वेक्षण इस तथ्य की ओर भी इशारा करता है कि बहुसंख्यक समुदाय के बीच अखिलेश यादव का समर्थन पिछले विधानसभा चुनाव में 18 प्रतिशत से बढ़कर 26 प्रतिशत हो गया। गौरतलब है कि बहुसंख्यक समुदाय के वोटों में सेंध लगाने के उद्देश्य से अखिलेश ने "नरम हिंदुत्व" के अनुसरण में अपने चुनावी अभियान के दौरान कई मंदिरों का दौरा किया था। 'सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज' के एक कार्यक्रम में लोकनीति के प्रोफेसर और सह-निदेशक संजय कुमार ने बताया कि सर्वेक्षण के निष्कर्ष एक व्यापक नमूने पर आधारित थे, जो किसी भी सर्वेक्षण के सटीक होने के लिए एक महत्वपूर्ण कारक है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने चुनावी जनसभाओं में भाजपा के पक्ष में 80 फीसद आबादी के ध्रुवीकरण के हिसाब से अपने संबोधन को केंद्रित रखा और उन्होंने 80 बनाम 20 प्रतिशत का नारा भी दिया। उनके बयान को राजनीतिक हलकों में उप्र में हिंदुओं और मुसलमानों की आबादी के आधार पर देखा गया था। 'द हिंदू' अखबार में विशेष रूप से प्रकाशित सीएसडीएस-लोकनीति सर्वेक्षण में कहा गया है कि अगर 80 प्रतिशत हिंदू समुदाय के मतदाताओं के वोट शेयर को ध्यान में रखा जाए, तो 2017 में 47 प्रतिशत की तुलना में भाजपा को 54 प्रतिशत मतदाताओं ने समर्थन दिया। सपा के लिए यह बढ़ोतरी पिछली बार के 19 प्रतिशत के मुकाबले 26 फीसदी रही।
वहीं, बसपा के लिए यह समर्थन पांच साल पहले के 23 से गिरकर 14 प्रतिशत और कांग्रेस के लिए चार से घटकर दो प्रतिशत रह गया। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन को 403 सदस्यीय विधानसभा में 273 सीटों के साथ बहुमत मिला, जबकि अखिलेश के नेतृत्व वाला समाजवादी गठबंधन 125 सीटें जीत सका। कांग्रेस को मिली सीटों का आंकड़ा पिछली बार के सात से गिरकर दो हो गया, जबकि मायावती के नेतृत्व वाली बसपा ने तीन दशक पहले अपनी स्थापना के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन देखा, जिसमें उसके केवल एक उम्मीदवार और विधानसभा में दल के नेता रहे उमाशंकर सिंह ने 2022 में जीत हासिल की।
चुनाव के बाद के सर्वेक्षण में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि मुस्लिम मतदाताओं में 79 प्रतिशत की पसंद सपा थी जो 2017 में 46 प्रतिशत थी। हालांकि, भाजपा के नेतृत्व वाले गठबंधन के 273 विजेताओं में कोई मुस्लिम नहीं है, लेकिन भाजपा के समर्थन में आठ फीसदी मुस्लिम मतदाताओं के साथ 2017 में तीन फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई। भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को इस चुनाव में मौका नहीं दिया था। हालांकि, रामपुर की स्वार सीट पर आजम खान के बेटे अब्दुल्ला आजम के खिलाफ अपना दल (सोनेलाल) से सत्तारूढ़ गठबंधन के एक मुस्लिम उम्मीदवार हैदर अली थे। अली इस चुनाव में आजम के बेटे से हार गए।
वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पूरे अभियान के दौरान शासन के "सबका साथ सबका विकास" मंत्र को अपने संबोधन के केंद्र में रखने से बसपा के लिए, मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन पिछली बार के 19 प्रतिशत की तुलना में इस बार 6 प्रतिशत तक कम है और कांग्रेस के लिए 2017 में 19 प्रतिशत के सापेक्ष इस बार तीन प्रतिशत है। बसपा ने सबसे अधिक 87 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे, उसके बाद कांग्रेस ने 75 और सपा ने 64 उम्मीदवार उतारे थे।
मौजूदा चुनाव में उप्र की 403 सदस्यीय विधानसभा में कुल 34 मुस्लिम विधायक जीते हैं जो पिछली बार की संख्या से नौ ज्यादा है। इनमें से 31 अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के हैं। बाकी तीन में दो सहयोगी रालोद और एक विधायक ओम प्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के हैं। सुभासपा से बाहुबली मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी ने मऊ की सीट जीतकर बांदा जेल में बंद अपने पिता की विरासत को बचा लिया है। वर्ष 2017 के चुनाव में सपा के 18 मुस्लिम विधायक, बसपा के पांच और कांग्रेस के दो विधायक थे। इसमें से सपा के अब्दुल्ला आजम नामांकन दाखिल करने के दौरान कम उम्र के होने के कारण अयोग्य घोषित हो गए थे।
(इनपुट- एजेंसी)