Highlights
- इस अनोखे मंदिर में होती हैं 'भैंसा जी' की पूजा
- हिंदू-मुस्लिम दोनों इस वजह से टेकते हैं माथा
- उत्तर प्रदेश के उन्नाव में स्थित है मंदिर
भारत को आस्थाओं का देश कहा जाता है। यहां तरह-तरह के लोगों की तरह-तरह की आस्थाएं हैं। ऐसा ही एक मंदिर उत्तर प्रदेश के उन्नाव में है, जहां एक भैंसे की मूर्ती स्थापित है, जिसे लोग भैंसा जी कह कर पूजते हैं। इस मंदिर की खास बात यह है कि यहां भैंसा जी की मूर्ती अन्य देवी देवताओं के साथ लगाई गई है। कहते हैं कि इस मंदिर में भैंसा जी के सामने भक्त जो मनोकामना करते हैं वो पूरी हो जाती है। मनोकामना पूरी होने के बाद भक्त मंदिर परिसर में एक भैंसे की मूर्ती का भी निरमाण कराते हैं। मंदिर के चारो ओर आपको भैंसे की कई मूर्तियां नज़र आएंगी।
सबकी आस्था है
इस मंदिर में क्या हिंदू क्या मुस्लिम सभी धर्मों के लोग माथा टेकने पहुंचते हैं। यहां हर साल एक मेले का भी आयोजन होता है, जिसमें दोनो समुदायों के लोग बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। हालांकि, यह एक लौता ऐसा मंदिर नहीं है जहां दोनों समुदायों के लोग एक साथ आते हैं। देखा जाए तो मुस्लिमों के भी ऐसे कई मजार और मस्जिदें हैं जहां हिंदू पूरी श्रद्धा के साथ माथा टेकते हैं।
गांव के लोग भैंसों और बैलों से काम तक नहीं लेते
इस गांव में भैंसों और बैलों को इतनी मान्यता है कि कोई इनसे एक काम नहीं लेता। मसलन आज तक इस गांव में बैलों और भैसों के माध्यम से खेतों की जुताई नहीं हुई। कहते हैं कि इन्ही बैलों और भैसों ने प्राचीन काल में इस गांव को दैत्यों के आतंक से बचाया था।
प्रयागराज में नागवासुकी मंदिर
प्रयागराज के दारागंज (Daraganj) में स्थित नागवासुकि मंदिर (Nagvasuki Temple) नागों का मंदिर कहा जाता है। सावन माह और नागपंचमी पर मंदिर में भक्तों की लाइन लगी रहती है। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान मंदिर में विग्रह के दर्शन मात्र से पाप का नाश होता है। वहीं, कालसर्प के दोष (Kalsarp Dosh) से भी मुक्ति मिलती है।
साल में एक दिन देश भर से जाते हैं भक्त
अक्सर प्रसिद्ध मंदिरों में साल भर भक्तों की भीड़ होती है। लेकिन इस मामले में यह मंदिर अलग है। क्योंकि वैसे तो साल भर इस मंदिर में सन्नाटा पसरा रहता है, लेकिन सावन का महीना आते ही यहां दर्शनार्थी आने लगते हैं। वहीं नागपंचमी के दिन तो मंदिर में भक्तों का जमघट लग जाता है। प्रयागराज में इस मौके पर, नागपंचमी का मेला भी लगता है। इसकी परंपरा महाराष्ट्र के पैष्ण तीर्थ से जुड़ती है, जो नासिक की तरह गोदावरी के तट पर स्थित है।