Highlights
- असदुद्दीन ओवैसी खुद को अल्पसंख्यकों का रहनुमा बताते हैं
- नेता-अभिनेता के बारे में विवादित बयान देकर अकसर सुर्खियों में बने रहते हैं
- पिछले लगभग 20 साल में न सिर्फ हैदराबाद से लोकसभा की अपनी सीट को बनाए रखा
हैदराबाद की तकरीबन सौ साल पुरानी एक छोटी सी पार्टी को धीरे-धीरे मजबूत करके पिछले एक दशक से उसकी जड़ें देशभर में जमाने की कोशिश में लगे ऑल इंडिया मजलिए-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी खुद को अल्पसंख्यकों का रहनुमा बताते हैं और किसी भी नेता-अभिनेता के बारे में विवादित बयान देकर अकसर सुर्खियों में बने रहते हैं।
कुछ लोगों का कहना है कि वह जब मुंह खोलते हैं तो बस आग उगलते हैं और कुछ लोग यह मानते हैं कि वह अल्पसंख्यकों के हितों की बात करते हैं एवं पुरजोर तरीके से उनके लिए आवाज उठाते हैं। लोकतंत्र में सबको अपनी बात कहने का हक होने का तर्क देकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह और अभिनेता सलमान खान सहित अनेक लोगों पर विवादित टिप्पणियां कर चुके असदुद्दीन ओवैसी डंके की चोट पर कहते हैं कि उनकी लड़ाई इस देश से नहीं बल्कि यहां हुकूमत करने वालों और मुसलमानों के साथ भेदभाव करने वालों से है।
उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव की गहमागहमी के बीच ओवैसी पर हमले की घटना ने भी सांप्रदायिक रंग अख्तियार कर लिया है और ओवैसी ने यह कहकर केंद्र सरकार की जेड प्लस श्रेणी की सुरक्षा की पेशकश को ठुकरा दिया है कि पहले उन्हें देश का ए श्रेणी नागरिक का दर्जा दिया जाए।
पुराने हैदराबाद के एक बेहद मुअज्जिज घराने से ताल्लुक रखने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने लंदन से कानून की पढ़ाई की और पिछले लगभग 20 साल में न सिर्फ हैदराबाद से लोकसभा की अपनी सीट को बनाए रखा बल्कि महाराष्ट्र, बिहार, पश्चिम बंगाल और अब उत्तर प्रदेश में अपनी पार्टी के लिए राजनीतिक जमीन तलाश करने की जद्दोजहद में लगे हैं।
वर्ष 1957 में मजलिस को राजनीतिक पार्टी के तौर पर बहाल किया गया तथा इसके नाम में 'ऑल इंडिया' जोड़ा गया और इसका संविधान भी बदला गया। राजनीतिक तौर पर लोकप्रियता हासिल करने में ओवैसी के धारदार बयानों का बहुत बड़ा हाथ है। अल्पसंख्यक समुदाय और खास तौर से युवा वर्ग उनके कट्टर समर्थकों में शामिल है।