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क्या है वो चौरी-चौरा कांड? जिसके शताब्दी समारोह का आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया उद्घाटन

चार फरवरी-1922 इसी दिन गोरखपुर से पश्चिम करीब 20 किलोमीटर दूर चौरी-चौरा में एक घटना घटी। इस घटना की वजह से महात्मा गांधी को अपना असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा था।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: February 04, 2021 11:23 IST
क्या है वो चौरी-चौरा...- India TV Hindi
Image Source : FILE PHOTO क्या है वो चौरी-चौरा कांड, जिसके बाद गांधीजी ने वापस ले लिया था असहयोग आंदोलन

नई दिल्ली: चार फरवरी-1922 इसी दिन गोरखपुर से पश्चिम करीब 20 किलोमीटर दूर चौरी-चौरा में एक घटना घटी। इस घटना की वजह से महात्मा गांधी को अपना असहयोग आंदोलन वापस लेना पड़ा था। तबके इतिहासकारों ने इतिहास का रुख मोड़ देने वाली इस घटना को कोई खास तवज्जो नहीं दिया। नामचीन इतिहासकारों की किताबों में चंद लाइनों में इस घटना का जिक्र है। आजादी के बाद भी किसी ने इस भूल को सुधारने की कोशिश नहीं की। देश की स्वाधीनता के लिए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूलने वालों, आजीवन करावास की सजा पाने वालों और अंग्रेजों के जुल्म के शिकार लोगों को शहीद और स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा पाने में वर्षों लग गये।

चार फरवरी 2021 से शुरू और साल भर चलने वाले चौरी-चौरा के शताब्दी वर्ष पर पहली बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर उनकी सरकार चौरी-चौरा के शहीदों और उनके परिजनों को वह सम्मान देने जा रही है जिसके वह हकदार हैं। कार्यक्रम का वर्चुअल उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस दिन पूरे प्रदेश में एक साथ, एक समय पर बंदे मातरम गूंजा और सुबह प्रभात फेरी निकली। शाम को हर शहीद स्थल पर दीप प्रज्‍जवलित किया जाएगा। शहीदों की याद में अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम होंगे। चौरी-चौरा शताब्दी समारोहों को मनाने का फैसला उत्तर प्रदेश सरकार ने लिया है। राज्य के सभी 75 जिलों में इस साल चार फरवरी से अगले साल चार फरवरी तक विभिन्न समाराहों का आयोजन किया जाएगा।

क्या है चौरी-चौरा कांड

चौरी चौरा गोरखपुर का एक गांव है। आजादी के आंदोलन के दौरान यह गांव ब्रिटिश पुलिस तथा स्वतंत्रता सेनानियों के बीच हुई हिंसक घटनाओं के कारण चर्चा में रहा। चौरी चौरा में 4 फरवरी, 1922 को स्थानीय पुलिस और राजनीतिक कार्यकर्ताओं के बीच अप्रत्याशित संघर्ष हुआ और फिर क्रोध से भरी हुई भीड़ ने चौरी-चौरा के थाने में आग लगा दी और 22 पुलिसकर्मियों को जिंदा जला दिया था। चौरी चौरा की इस घटना से राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा चलाये गये 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' को आघात पहुंचा, जिसके कारण उन्हें इसे स्थागित करना पड़ा था।

महात्मा गांधी के इस फैसले को लेकर क्रांतिकारियों का एक दल नाराज़ हो गया था। 16 फरवरी 1922 को गांधीजी ने अपने लेख 'चौरी चौरा का अपराध' में लिखा कि अगर ये आंदोलन वापस नहीं लिया जाता तो दूसरी जगहों पर भी ऐसी घटनाएं होतीं। उन्होंने इस घटना के लिए एक तरफ जहां पुलिस वालों को ज़िम्मेदार ठहराया क्योंकि उनके उकसाने पर ही भीड़ ने ऐसा कदम उठाया था तो दूसरी तरफ घटना में शामिल तमाम लोगों को अपने आपको पुलिस के हवाले करने को कहा क्योंकि उन्होंने अपराध किया था।

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