मिर्जापुर: प्राचीन काल से चली आ रही रक्षाबंधन की परंपरा को एक दंपति ने वैदिक राखी के माध्यम से एक नया आयाम देने का प्रयास किया है। पूजन में प्रयोग होने वाले अक्षत, हल्दी, दूर्वा, शमी पत्र, कुमकुम और गाय के गोबर से तैयार वैदिक राखियां भाइयों की कलाई की शोभा बढ़ाएंगी। यह भाई बहन के प्यार को और प्रगाढ़ बनाएगी। विंध्याचल स्थित महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की ओर से ग्रामीण महिलाओं द्वारा वैदिक राखी तैयार की जा रही है। यहां की महिलाएं लोगों को वैदिक राखी बनाकर रक्षाबंधन पर्व पर बांधने के लिए प्रेरित कर रही हैं। इसे पूजा में प्रयोग होने वाले अक्षत, हल्दी, दूर्वा, और शमी पत्र से तैयार किया जा रहा है।
महिला प्रबोधिनी फाउंडेशन की अध्यक्ष नंदिनी मिश्रा ने बताया, "कोरोना संकट से लोगों को धर्म शास्त्रों में वर्णित जीवन पद्धति के प्रति आस्था बहुत ही तेजी से बढ़ी है। ऐसे में विन्ध्याचल में स्वयं सहायता समूहों की कुछ ग्रामीण महिलाओं ने वैदिक राखी का निर्माण शुरू किया है। वैदिक राखी का निर्माण सनातन धर्म संस्कृति में वर्णित प्राकृतिक तžवों में मौजूद औषधीय गुणों पर आधारित है।"
उन्होंने आगे कहा, "वैदिक राखी भी पंच प्राकृतिक तत्वों - दूर्वा , चंदन, शमी पत्र, अक्षत, कुम कुम का प्रयोग करके बनाया गया है। इसमें आस-पास की बेरोजगार महिलाओं को इस फांउडेशन में जोड़कर इस काम में लगाया गया है। हम लोगों को इस क्षेत्र से कोई नाता नहीं है। मैं प्रयाग से हूं, पति बिहार से हैं। 1999 से यही पर हैं। यहां की ग्रामीण महिलाओं को बहुत सारे रोजगार के माध्यम से जोड़ा गया है। विंध्य क्षेत्र की ग्रामीण मातृशक्तियों को संगठित कर उन्हें शुरू से ही आत्मनिर्भर बनने के लिए पूरी तरह तैयार किया जा रहा है।
फाउंडेशन के निदेशक विभूति मिश्रा ने बताया, "महिला प्रबोधिनी का उद्देश्य यह रहा है कि मातृशक्तियां आत्मनिर्भर बनें, इसलिए स्वयं सहायता समूह का बनाया गया है। उन्होंने बताया कि वैदिक राखी बनाने में करीब पांच दिन लगते हैं। इसमें 3 से 5 रुपए का खर्च आता हैं। इस काम में 50 महिलाएं लगी हुई हैं। यह स्वयं सहायता समूह किसी प्रकार से सरकार अनुदान नहीं लेता है। इस बार अभी तक तकरीबन 15 सौ राखियां बिक चुकी है। इसकी बिक्री 25 रुपये की होती है।"
उन्होंने बताया कि प्रयागराज, बनारस, भदोही, मीरजापुर क्षेत्रों में भी इसकी खूब मांग रही है। संत महात्मा, धमार्चार्य भी इस राखी की मांग कर रहे हैं। राखी निर्माण में मंजू लता, विश्वकर्मा, शिवदुलारी गुप्ता, शान्ति देवी , मालती देवी, और आरती देवी अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
मंजू लता ने बताया, "वैदिक राखी का आधार गाय के गोबर से तैयार किया जाता है। इसमें उरद दाल का चूर्ण, गोंद और मुल्तानी मिट्टी मिलाकर सूती कपड़े में बेस बनाकर इसे सुखाया जाता है। इसके बाद इसको पेंसिल से डिजाइन काटा जाता है। उसी डिजाइन में शमी के पत्ते को बिछाया जाता है। इसमें हल्दी, चंदन, कुमकुम का पेस्ट लगाया जाता है। इसमें भी उरद और गोंद का मिश्रण लगाया जाता है। फिर सूखा लिया जाता है। इसके बाद सीट तैयार हो जाती है। इसे कैंची से काट कर तैयार कर लिया जाता है। कलावा राखी के पीछे लगा दिया जाता है। राखी ऐसी तैयार हो जाती है।"
प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्री प्रखर गोस्वामी ने बताया, "वैदिक राखी के निर्माण में जिन समाग्रियों का प्रयोग हो रहा है, उनका हमारे वैदिक धर्म ग्रंथों में बड़ा ही महत्व बताया गया है। धर्म शास्त्र के अनुसार, अक्षत जिसे चावल भी कहते हैं, यह सभी धार्मिक अनुष्ठानों में प्रयुक्त होता है, वही हल्दी का भी पूजन यज्ञ आदि में प्रयोग होता है। इसके अलावा यह बहुत बड़ा रोग प्रतिरोधक माना जाता है। दूर्वा का भी धर्म शास्त्रों में बहुत ही बड़ा स्थान है, उसी प्रकार शमी पत्र तो सावन माह में बाबा भोलेनाथ का विशेष प्रिय पत्र है।"
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