लखनऊ: राजस्थान में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) छोड़कर छह विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के बाद बसपा के उत्तर प्रदेश विधान परिषद के तीन सदस्यों के भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने की संभावना है। सूत्रों के अनुसार, बसपा विधान परिषद सदस्यों ने राज्य भाजपा नेताओं के साथ बैठक की है और बसपा से इस्तीफा देने से पहले पार्टी हाईकमान के साथ बैठक की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
बसपा के एक राज्यसभा सांसद के भी भाजपा में जाने की संभावना है। बसपा के वर्तमान में राज्यसभा में चार सदस्य है और विधान परिषद में आठ सदस्य हैं। दूसरी तरफ भाजपा को 100 सदस्यीय उत्तर प्रदेश विधान परिषद में बहुमत नहीं प्राप्त है, जहां भाजपा के सिर्फ 21 सदस्य है, जबकि समाजवादी पार्टी के 55 सदस्य है और बसपा के 8 सदस्य हैं।
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता नाम जाहिर न करने की शर्त पर कहा, "बसपा को हमेशा से बिखराव का खतरा रहा है। इतिहास इसका गवाह है और हम किसी को पार्टी छोड़ने को बाध्य नहीं कर रहे हैं।" उन्होंने कहा, "अगर नेता, नेतृत्व से नाखुश है तो यह नेतृत्व है जिसे दोषी ठहराया जाना है। अगर कोई बेदाग छवि के साथ आता है तो हम खुले हाथों से उनका स्वागत करेंगे।"
हालांकि, नेता ने यह खुलासा करने से इनकार कर दिया कि कब बसपा के एमएलसी भाजपा में शामिल होंगे। हालांकि, उन्होंने कहा, "सपा सांसदों व एमएलसी के मामलों में हमने अपनी बात रखी है और उन्हें संबंधित सदनों में फिर से नामित किया है। बसपा नेताओं को यह बात समझनी चाहिए।"
संयोगवश, बसपा की कमान जबसे मायावती ने संभाली है, तभी से पार्टी पर विभाजन का खतरा मंडराता रहा है।
बसपा में पहला विभाजन 1995 में हुआ, जब लखनऊ में राज्य गेस्ट हाउस कांड हुआ और तत्कालीन राज्य बसपा अध्यक्ष राज बहादुर, कुछ अन्य विधायकों के साथ समाजवादी पार्टी में चले गए। बसपा ने 1993 चुनावों में 67 सीटें जीती थी और कुछ विधायक मायावती की सौदेबाजी को लेकर नाराज थे। मायावती तब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह के साथ सौदेबाजी में जुटी थी।
बसपा में सबसे बड़ा विभाजन 1997 में हुआ, इस बार भी बसपा के पास 67 सीटें थीं। इस बार मायावती ने भाजपा से समर्थन वापस लिया था। बसपा के 20 विधायकों ने अलग होकर जनतांत्रिक बहुजन समाज पार्टी बनाई और कल्याण सिंह सरकार को समर्थन दिया। सभी को मंत्री बनाया गया।