लखनऊ: शुरू में आम के सरसब्ज बौर को देखकर झूमे उत्तर प्रदेश के बागवानों के चेहरों पर अब मायूसी है। नामाकूल मौसम ने आम की रिकॉर्ड फसल की उम्मीदों में ज़र्ब लगा दिया है, वहीं नकली दवाओं की मार ने हालात और भी खराब कर दिए हैं। उत्तर प्रदेश की आम पट्टी के बाग इस मौसम में बौर से लद गए थे लेकिन अनुकूल मौसम ना होने तथा अन्य कारणों से फसल में 30 से 40 प्रतिशत तक की गिरावट की आशंका जताई जा रही है। मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन ऑफ इण्डिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने बताया कि इस साल 100 प्रतिशत बौर होने की वजह से आम की बंपर फसल की उम्मीद थी लेकिन पिछले 15-20 दिनों से दिन में गर्मी और रात में ठंडा मौसम होने की वजह से आम में ‘झुमका’ रोग बहुत बुरी तरह लग गया है। इससे काफी नुकसान हुआ है।
उन्होंने कहा कि जब बौर आया था तो हमने सोचा था कि उत्तर प्रदेश में करीब 50 लाख मीट्रिक टन आम का उत्पादन होगा लेकिन उसके बाद पैदा हुए हालात के कारण अब आम की फसल को 30 से 40 प्रतिशत तक नुकसान होने की आशंका है। अली ने कहा कि मौसम में अप्रत्याशित बदलावों के कारण आम की फसल में नए-नए रोग लग रहे हैं, जिनका इलाज वैज्ञानिकों के पास नहीं है। पहले बहुत सी दवाएं थीं, जो अब बेअसर हो रही हैं।
हर साल आम की अनोखी किस्में तैयार करने वाले मशहूर बागवान कलीम उल्ला ने भी मौसम के कारण हुए आम के नुकसान पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि करीब 60 साल बाद उन्होंने आम के पेड़ों पर इतना घना बौर देखा था, मगर मौसम ने सब बेड़ा ग़र्क कर दिया। उल्ला ने कहा कि इस बार उन्होंने आम की 12-14 नई किस्में तैयार तो की हैं लेकिन मौसम ने उनके बढ़ने की उम्मीदों पर करारी चोट कर दी है। उन्होंने कहा कि आम के पेड़ों को रोग से बचाने के लिए छिड़की जाने वाली दवाओं के नकली होने से बागवानों को काफी नुकसान हो रहा है और सरकार को ऐसी दवाओं की बिक्री रोकने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए।
इंसराम अली ने बताया कि पिछली 19-20 फरवरी को नई दिल्ली में किसानों की आय दोगुनी करने के सम्बन्ध में दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित की गयी थी, जिसमें उन्होंने आम को भी फसल बीमा योजना के तहत लाने की बात कही थी। इस पर कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा था कि इस मामले को प्रदेश सरकार ही तय करेगी। इस बारे में उत्तर प्रदेश सरकार को करीब 20 दिन पहले पत्र लिखा गया था लेकिन अभी तक उसका कोई जवाब नहीं आया है। उन्होंने कहा कि सरकार किसानों की आमदनी को दोगुनी करने की बात तो कर रही है लेकिन आलम यह है कि काश्तकारों को अपनी उपज की लागत निकालना मुश्किल हो रहा है। आम बागवान भी किसान ही हैं लेकिन उन्हें कृषक का दर्जा नहीं मिल रहा है।
अली ने कहा कि सरकार को चाहिए कि वह आम पट्टी क्षेत्रों में पर्यटन स्थल बनाए। इन क्षेत्रों में फैक्टरी लगवाए ताकि किसान अपनी उपज को सीधे उस तक पहुंचा सकें। इसके अलावा सरकार नकली कीटनाशक दवाओं पर रोक लगाए और आम निर्यात के लिए दी जाने वाली सब्सिडी की रकम बढ़ाए। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश की आम पट्टी राजधानी लखनऊ के मलीहाबाद, उन्नाव के हसनगंज, हरदोई के शाहाबाद, बाराबंकी, प्रतापगढ़, सहारनपुर के बेहट, बुलंदशहर, अमरोहा समेत करीब 14 इलाकों तक फैली है और लाखों लोग रोजीरोटी के लिए इस फसल पर निर्भर करते हैं।