नई दिल्ली: आज उत्तर प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों गोरखपुर और फूलपुर में उपचुनाव होने हैं। इस उपचुनाव से उत्तर प्रदेश की सियासत की दिशा और दशा तय होगी। योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता, उनके कामकाज का, उनकी सरकार की बड़ी परीक्षा होगी। इस चुनाव से पता चलेगा कि गोरखपुर छोड़ने के बाद भी योगी की अपने गढ़ पर कितनी पकड़ है। इस चुनाव में 22 साल बाद एसपी और बीएसपी साथ आए हैं। ये चुनाव इस समीकरण का भी इम्तिहान है। 2019 में चुनाव की तस्वीर क्या होगी, ये इस उपचुनाव से साफ होगा।
यूपी के उप चुनावों से ऐसा बदलाव नहीं होने वाला जो आपको नजर आए। सरकारों पर कोई फर्क नहीं पड़ने वाला, ना केंद्र पर और ना ही राज्य पर। फिर भी इस चुनाव पर दांव बड़ा है क्योंकि नतीजों का संदेश बड़ा होगा और ये दिल्ली तक जाएगा। इसका परिणाम 2019 की चुनावी जंग का रुख तय करेगी। यह चुनाव सीएम योगी की साख का इम्तिहान है। योगी के सामने चुनौती दोहरी है। अपने गढ़ में अपनी पार्टी को जीत दिलाना है और एसपी-बीएसपी के नए गठबंधन से पैदा हुई नयी सियासी उम्मीदों को कुचलना है। योगी के कंधों पर एक नए सोशल इंजीनियरिंग के एक्सपेरिमेंट को वजूद में आने से पहले फेल करने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। योगी इसे बखूबी समझते हैं, इसिलए उन्होंने इस चुनाव में उन्होंने यूपी की जनता को मुगलिया सल्तनत तक की याद दिला दी, औरगंजेब को इस चुनाव में खींच लाए।
उप चुनाव में अखिलेश और मायावती के साथ आने से जातिय समीकरण बदला है। योगी को मालूम है कि लड़ई आसान नहीं, इसलिए वो सीधा इस गठबंधन को टारगेट कर रहे हैं। जनता को बता रहे हैं कि ये जोड़ी बेमेल है, सत्ता स्वार्थ से बंधी है। यह टिकने वाली नहीं है। यह चुनाव इसलिए भी बड़ा है, क्योंकि यूपी की दोनो सीटें, यूपी की सत्ता के शीर्ष पर बैठे लोगों की है। एक तरफ योगी आदित्यनाथ का अपना गोरखपुर है तो दूसरी तरफ डिप्टी सीएम की खाली की हुई सीट फूलपुर है। दोनों ही सीटों पर योगी के सम्मान और सियासी हनक की परीक्षा है। इसलिए योगी हर मौके पर विपक्ष को कुचलने की कोशिश कर रहे हैं।
अखिलेश- मायावती की दोस्ती जाति समीकरण पर है उसे योगी धर्म से काटने की कोशिश कर रहे हैं। अखिलेश इसे समझते हैं, इसलिए चुनावी प्रचार में अपनी धार्मिक पहचान जाहिर करने से भी नहीं चूक रहे। योगी आदित्यनाथ और अखिलेश यादव दोनो ही इस चुनाव की अहमियत समझते हैं। अखिलेश को मालूम है कि यूपी की सियासत में बने रहने के लिए इन चुनावों का जीतना जरूरी है, और योगी को पता है कि अगर ये हारे तो इसका असर सीधा 2019 के लोकसभा चुनावों पर पड़ेगा। इसलिए दोनो ही पार्टियां इस उपचुनाव में अपना हर जोर आजमा रही हैं।