उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों में एक ओर जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अच्छे दिनों की परख होगी, वहीं पूर्वाचल में मोदी मंत्रिमंडल के कई मंत्रियों और सांसदों की साख भी दांव पर होगी। पूर्वांचल में अगर भाजपा को अच्छे परिणाम नहीं मिले तो चुनाव बाद इन मंत्रियों का कद घटना तय है।
पूर्वाचल में अंतिम दो चरणों में चार मार्च और आठ मार्च को मतदान होगा। प्रधानमंत्री ने जहां रैलियों कर करके अपनी सारी ताक़त झोंक दी है, वहीं मोदी मंत्रिमंडल में शामिल पूर्वांचल के कई मंत्रियों व पूर्वांचल के दर्जनभर सांसदों की ज़मीनी हक़ीक़त का भी इम्तहान होगा।
प्रधानमंत्री मोदी ख़ुद उप्र से चुनकर लोकसभा में पहुंचे हैं और इस लिहाज़ से पूर्वी उत्तर प्रदेश का चुनाव ज़्यादा ही महत्व रखता है। उनके ख़ुद के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में विधानसभा की आठ सीटों में से तीन ही भाजपा के पास हैं। साथ ही पड़ोसी ज़िलों मिर्ज़ापुर, आज़मगढ़, मऊ व गाज़ीपुर में पार्टी का कोई विधायक नहीं है। बलिया और चंदौली में भी भाजपा के पास इस समय एक-एक विधायक ही है।
बहरहाल, भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता मनीष शुक्ला का कहना है कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव लड़ रही है। सभी नेता विधानसभा चुनाव में लगे हुए हैं। यह कहना कि चुनाव बाद किसका कद तय होगा, किसका नहीं, यह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि पिछला विधानसभा चुनाव 2012 में हुआ था। तब पार्टी की स्थिति कुछ और थी। इसके बाद वर्ष 2014 में भी लोकसभा का चुनाव हुआ। पार्टी ने उन इलाकों में भी बेहतर प्रदर्शन किया, जहां उसकी स्थिति ठीक नहीं थी। इस बार भी पार्टी को दो-तिहाई बहुमत मिलने जा रहा है। भाजपा की सरकार उप्र में बनने जा रही है।
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