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UP election 2017: बुंदेलखंड में चुनावी माहौल पर 'नोटबंदी' की मार!

झांसी: झांसी-ललितपुर मार्ग पर सड़क किनारे फुटपाथ पर चूड़ी, बिंदी आदि बेचने वाली लीला गोस्वामी (36) के चेहरे पर कारोबार पर छाई मंदी के दर्द को आसानी से पढ़ा जा सकता है, चिंता की लकीरें

IANS
Published on: February 03, 2017 12:43 IST
Bundelkhand- India TV Hindi
Bundelkhand

झांसी: झांसी-ललितपुर मार्ग पर सड़क किनारे फुटपाथ पर चूड़ी, बिंदी आदि बेचने वाली लीला गोस्वामी (36) के चेहरे पर कारोबार पर छाई मंदी के दर्द को आसानी से पढ़ा जा सकता है, चिंता की लकीरें उसके माथे पर साफ नजर आती हैं, क्योंकि नोटबंदी के बाद उसका कारोबार महज एक चौथाई जो रह गया है। 

बुंदेलखंड वह इलाका है, जिसकी देश और दुनिया में सूखा, समस्याग्रस्त इलाके के तौर पर पहचान है। यह क्षेत्र उत्तर प्रदेश के सात और मध्यप्रदेश के छह जिलों में फैला हुआ है। उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनाव में इस इलाके के सात जिलों में चुनावी रंग दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहा है, अगर कुछ नजर आता है तो वह है नोटबंदी से मजदूर, छोटे कारोबारियों और रोज कमाने खाने वालों के कामकाज पर पड़ा असर। 

बबीना थाने के करीब सड़क किनारे फुटपाथ पर मनिहारी (महिला श्रृंगार सामग्री) की दुकान लगाए लीला गोस्वामी को हर वक्त ग्राहक का इंतजार रहता है, मगर उसका इंतजार कई कई घंटों में पूरा होता है। वह बताती है कि नोटबंदी से पहले वह दिन भर में हजार रुपये का सामान बेच लिया करती थी, मगर अब बिक्री मुश्किल से ढाई सौ से तीन सौ रुपये तक ही हो पाती है। 

वह कहती है कि नोटबंदी का असर सबसे ज्यादा गरीबों पर पड़ा है, क्योंकि एक तरफ उन्हें काम नहीं मिल रहा तो दूसरी ओर उन जैसे दुकानदारों के यहां खरीदार नहीं आ रहे। ऐसा इसलिए, क्योंकि रोज कमाने-खाने वाले ही तो उसके यहां से सामान खरीदते थे। 

बुंदेलखंड में विधानसभा की 19 सीटें हैं और यहां मतदान 23 फरवरी को होना है। चुनाव और मतदान को लेकर चर्चा करने पर लीला कहती है, "मैं वोट दूंगी, यह मेरा अधिकार है। उस दिन मुझे अपनी दुकान बंद करनी होगी तो करूंगी, मगर यह नहीं बताऊंगी कि वोट किसे दूंगी।"

मिठाई दुकान के मालिक अनिल गुप्ता भी नोटबंदी का कारोबार पर पड़ने वाले असर को स्वीकारते हैं। उनका कहना है कि नोटबंदी से पहले एक दौर ऐसा था, जब उनकी दुकान का समोसा ठंडा नहीं होता था और बिक जाता था, मगर अब ऐसा नहीं रहा। दुकान पर रखे समोसे के खरीदार कम ही आते हैं, आलम यह है कि मिठाई चार-पांच दिन के अंतर से बनती है।

गुप्ता आगे कहते हैं कि नोटबंदी से लोगों को परेशानी तो है, मगर किसी के प्रति गुस्सा नहीं है, क्योंकि सभी को यह लगता है कि यह फैसला देशहित में लिया गया है।

फुटपाथ पर दुकान लगाने वाला पप्पू लखेरा (40) भी नोटबंदी के बाद कारोबार पर पड़े असर से पीड़ित है। उनका कहना है कि ग्राहक ही कम आते हैं, जिसका नतीजा है कि वे रोज दुकान भी नहीं लगाते। कारोबार तो सबका प्रभावित हुआ है, मगर सबसे बुराहाल रोज कमाने खाने वाले का हुआ है। 

नोटबंदी हुए लगभग तीन माह का वक्त होने को आ गया है, मगर बुंदेलखंड में इसका असर अब भी बना हुआ है, क्योंकि यहां की बड़ी आबादी रोज कमाने-खाने पर निर्भर है। इसके अलावा जो परिवार पलायन कर काम की तलाश में दूसरे प्रदेशों को गए थे, उनमें से भी बड़ी संख्या में काम बंद होने से घरों को लौट आए हैं, और अब उन्हें अपने ठेकेदार के संदेश का इंतजार है। 

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