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वाराणसी: लापरवाही ना होती तो बच जाती जान, क्या सिर्फ मुआवजा देने भर से भर जाएंगे जख्म?

अगर हम घर से मुस्कुराते हुए निकले और कफन में लिपटकर लौटे तो ऐसी घटनाओं को हम हादसा कब तक कहते रहेंगे। एक बड़ी लापरवाही और पुल के इस स्लैब के नीचे फंस कर रह गई कई लोगों की धड़कनें। चलते फिरते लोगों पर कहर टूट पड़ा था।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: May 16, 2018 9:55 IST
under-construction flyover collapses in Varanasi- India TV Hindi
वाराणसी: लापरवाही ना होती तो बच जाती जान, क्या सिर्फ मुआवजा देने भर से भर जाएंगे जख्म?

नई दिल्ली: कल पूरा दिन कर्नाटक के चुनावी नतीजों के नाम रहा लेकिन शाम होते-होते खबर बदल गई। वाराणसी में फ्लाईओवर का हिस्सा गिरने से 20 लोगों की मौत हो गई है, जबकि 3 लोगों को मलबे से जिंदा निकाला गया। इस हादसे में कई परिवार उजड़ गए। जैसे ही लोगों को घटना की खबर मिली, लोग अपनों की तलाश में दौड़ पड़े। किसी को अपना मिला तो कोई अब भी अपनों को ढूंढ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी इस हादसे पर दुख जताया। इस हादसे में यूपी सरकार ने कार्रवाई करते हुए चीफ प्रोजेक्‍ट मैनेजर समेत 4 अधिकारियों को सस्‍पेंड किया है लेकिन सवाल उठता है कि इस लापरवाही का असली जिम्मेदार कौन है? क्या सिर्फ मुआवजा देने भर से जख्म भर जाएंगे?

अगर हम घर से मुस्कुराते हुए निकले और कफन में लिपटकर लौटे तो ऐसी घटनाओं को हम हादसा कब तक कहते रहेंगे। एक बड़ी लापरवाही और पुल के इस स्लैब के नीचे फंस कर रह गई कई लोगों की धड़कनें। चलते फिरते लोगों पर कहर टूट पड़ा था। इसमें कोई शक नहीं कि पुल पर काम चल रहा था। नीचे ट्रैफिक चल रही थी। गाड़ियां जाम में फंसी थी लेकिन इसके बाद भी न तो काम को रोका गया और न ही ट्रैफिक को जिसका नतीजा इतना बड़ा हादसा हुआ कि देखते ही देखते मौत की खबर आने लग गई।

करीब 100 करोड़ की लागत से इस पुल का निर्माण हो रहा था। पहले दिसंबर 2018 में इसे पूरा करने का टारगेट था। फिर इसे घटा कर मार्च किया गया लेकिन फिर दिसंबर कर दिया गया। काम चलता रहा लेकिन ना कभी ट्रैफिक को रोका गया ना डायवर्ट किया गया। जिस जगह पर ये हादसा हुआ है उसकी एक ओर रेलवे स्टेशन है। दूसरी तरफ बस स्टैंड है और इन दोनों के बीच से इस पुल को गुजरना था। लिहाजा इस चौराहे पर लोग हमेशा फंसते थे। कंस्ट्रक्शन को लेकर कई बार विवाद हो चुका था लेकिन फिर भी काम जारी था।

नाराजगी इस बात की भी है कि हादसे के एक घंटे तक प्रशासन का कोई अधिकारी नहीं पहुंचा। लोग दम तोड़ते रहे। ना कोई बचाने वाला नजर आ रहा था, ना कोई निकालने वाला और जब प्रशासन के लोग पहुंचे तो खाली हाथ आ गए। इस स्लैब को हटाने के लिए क्रेन तक की व्यवस्था नहीं थी। पुलिस को पता था, सरकार को पता था, प्रशासन को जानकारी थी कि पुल पर काम चल रहा है लेकिन इसके बाद भी ट्रैफिक को नहीं रोका गया। लोग आते रहे, गुजरते रहे और मंगलवार को ऐसा अमंगल हुआ कि एक पुल मौत का फ्लाईओवर बन गया।

इन हादसों को देखकर ऐसा लगता है कि इनको रोकने का कोई ठोस प्लान किसी के पास नहीं है। अब इस हादसे की जांच होगी, कमेटी बनेगी, रिपोर्ट आएगी लेकिन फिर क्या होगा। अगली बार वाराणसी नहीं तो कोई और शहर। सवाल सीधा है रास्ते पर मिली मौत को हम हादसा कब तक कहते रहेंगे?

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