कानपुर: किसे पता था कि नोटबंदी के चलते बैंक की लाइन में लगी सर्वेशा वहीं एक ऐसे बच्चे को जन्म देंगी जिसका नाम यूपी विधानसभा चुनाव में नेताओं की जुबान पर छा जाएगा? कानपुर देहात के झींझक कस्बे के सरदारपुर गांव में रहने वाली सर्वेशा देवी का ढाई महीने का बच्चा आज यूपी चुनावों का स्टार प्रचारक बना हुआ है। इस बच्चे के जन्म की कहानी भी काफी दिलचस्प है।
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नोटबंदी के दौरान पैदा हुआ था खजांची
सर्वेशा देवी के पति जसमेरनाथ की पिछले साल बीमारी के चलते मौत हो गई थी। सर्वेशा देवी के विधवा होने के बाद ग्राम प्रधान राम सिंह यादव ने उसकी गरीबी को देखते हुए लोहिया आवास की कालोनी आवंटित कर दी, जिसका पैसा सर्वेशा देवी के खाते में आया था। सर्वेशा अपनी सास शशि देवी के साथ 20 हजार रुपये निकालने के लिए झींझक कसबे की पंजाब नेशनल बैंक गई थी, जहां सुबह करीब 9 बजे से सर्वेशा लाइन में लगी थी। कई बार सर्वेशा ने बैंक मैनेजर से अपनी परेशानी बताई लेकिन हर बार मैनेजर ने लाइन में लगे रहने को कहा। शाम करीब 4 बजे सर्वेशा को जब बैंक में ही प्रसव हो गया तो बैंककर्मी सकते में आ गए और तुरंत सर्वेशा को पैसे दिए और गाड़ी से उसके घर भिजवाया।...तो इस तरह बच्चे का नाम खजांची पड़ा
सर्वेशा की मानें तो उसके बच्चे का नाम ग्राम प्रधान ने खजांची रखा क्योंकि उसका जन्म बैंक में हुआ था। ढाई महीने के खजांची को यह पता भी नहीं है कि उसके नाम का इस्तेमाल कर राजनेता अपनी छवि चमका रहे हैं। उसकी मां ने अपने बेटे के पैदा होने पर खुद को खुशकिस्मत समझा था। वजह भी सही थी कि बेटे ने पैदा होते ही मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से 'असंभव' मुलाकात करा दी और साथ में दो लाख रुपये का चेक भी दिलवा दिया। 5 बच्चों की मां 35 साल की सर्वेशा गर्भावस्था के अंतिम दिनों में थी। बैंक उनके घर से करीब 4 किलोमीटर दूर था। ऐसे में इस दूरी को कानपुर के मंगलपुर थाना में सरदारपुरवा गांव की सर्वेशा ने अपनी सास शशि देवी के साथ पैदल तय किया था।
टीबी से हुई थी सर्वेशा देवी के पति की मौत
करीब एक घंटे पैदल चलने के बाद वह लोहिया आवास की पहली किश्त लेने पंजाब नेशनल बैंक पहुंचीं। जब वह लाइन में लगी थीं, तभी सर्वेशा के पेट में जोर से दर्द उठा। बैंक परिसर में ही दूसरी महिलाओं ने उसे लिटा दिया। थोड़ी देर बाद उसने बच्चे को जन्म दिया। उस बच्चे का नाम खजांची रखा गया, जो आज यूपी चुनाव में चर्चित चेहरा बन चुका है। गौरतलब है कि सर्वेशा का परिवार बैगा नामक जनजाति से आता है। यह जनजाति देश के सबसे गरीब और वंचित समुदायों में एक है। उसका पति सपेरा था। पिछले साल अगस्त में टीबी से उसकी मौत हो गई थी। अब सर्वेशा किसी तरह जिंदगी गुजर-बसर कर रही है। खजांची के जन्म के बाद उसे 2 लाख रुपये मिले जिससे अब वो बहुत खुश है। उसका कहना है की इन रुपयों से अब वो अपने बच्चों को पढ़ाएगी ताकि उनका भविष्य सुधर सके।
खजांची का नाम फैलने से खुश हैं ग्रामीण और ग्राम प्रधान
वहीं ग्राम प्रधान और ग्रामीणों को भी खजांची का इतना नाम होने से बहुत खुशी हुई है। ग्राम प्रधान राम सिंह यादव की मानें उन्हें बहुत गर्व होता है की मैं उस गाव का प्रधान हूँ जिस गाव में खजांची पैदा हुआ। यह ढाई महीने का खजांची स्टार प्रचारक हो गया। उन्हें बहुत खुशी होती है कि मुख्यमंत्री अपनी हर सभा में खजांची का नाम लेते है।