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बेटी की शादी की खातिर ‘निर्भया’ के कातिलों को फांसी देने को बेताब पवन जल्लाद

जबसे दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के कातिलों को एक साथ फांसी पर लटकाने के लिए ‘डेथ वॉरंट’ जारी किया है, तबसे उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में रहने वाले पवन जल्लाद की खुशी का ठिकाना नहीं है।

Reported by: IANS
Updated on: January 09, 2020 11:38 IST
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Ready to hang Nirbhaya convicts as desperately need money for daughter's wedding, says Pawan Jallad | ANI/India TV

मेरठ: जबसे दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट ने निर्भया के कातिलों को एक साथ फांसी पर लटकाने के लिए ‘डेथ वॉरंट’ जारी किया है, तबसे उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में रहने वाले पवन जल्लाद की खुशी का ठिकाना नहीं है। आसमान की ओर दोनों हाथ जोड़कर पवन जल्लाद ईश्वर के साथ-साथ, तिहाड़ जेल प्रशासन और उत्तर प्रदेश जेल महानिदेशालय का बार-बार शुक्रिया अदा कर रहे हैं, क्योंकि निर्भया के कातिलों को फांसी पर लटकाने की एवज में उन्हें एक लाख रुपये जैसी 'मोटी पगार' जिंदगी में पहली देखने को मिलेगी। मेहनताने में हासिल इस रकम से पवन जल्लाद घर में कुंवारी बैठी 18 साल की बेटी की शादी कर देंगे।

पवन के परदादा, दादा और पिता भी थे जल्लाद

बकौल पवन जल्लाद, ‘इस वक्त मैं 57 साल का हो चुका हूं। मैंने अपने जीवन में इससे पहले कभी, इतनी बड़ी रकम फांसी के बदले मेहनताने के रूप में मिलती हुई न देखी न सुनी। कहने को भले ही मैं देश में खानदानी जल्लाद क्यों न होऊं। मेरे परदादा लक्ष्मन जल्लाद थे। दादा कालू राम उर्फ कल्लू और पिता मम्मू भी पुश्तैनी जल्लाद थे। दादा ने रंगा-बिल्ला से लेकर इंदिरा गांधी के हत्यारे सतवंत सिंह केहर सिंह तक को इसी तिहाड़ जेल में फांसी पर लटकाया था। मगर वह जमाना औने-पौने मेहनताने का था। आने-जाने का खर्चा और जेल में एक-दो रात अच्छे से रहने के इंतजाम से ही हमारे पुरखे सब्र कर लेते थे। आज महंगाई का जमाना है। पहले गरीब आदमी रोटी-नमक-प्याज खाकर जिंदगी बसर कर लेता था। आज प्यास देश में 150 रुपये किलो बिक रहा है।’

फांसी के लिए मिले पैसों से करूंगा बेटी की शादी
पवन जल्लाद ने बुधवार को बेहद बेबाकी से अपनी बातें कहीं। निर्भया के हत्यारों को फांसी पर चढ़ाने को लेकर देश में और भी मौजूद एक-दो जल्लादों में से कोई इतना बे-सब्र या बेताब नहीं है जितने आप? पूछने पर पवन जल्लाद ने बेबाकी से कहा, ‘पांच बेटियां और दो बेटे मतलब 7 संतान जिस पिता के सहारे हों, इस महंगाई के जमाने में, सोचिये उसकी जरूरतों का आलम क्या होगा? इन चारों को फांसी पर लटकाने की एवज में एक लाख रुपये एक साथ हाथ में आने की उम्मीद बंधी है। जैसा मीडिया में सुन रहा हूं। यूपी जेल महकमे ने भी मुझे अलर्ट रहने और जिला न छोड़ने को कहा है। इन रुपयों से 18 साल की कुंवारी बेटी की शादी कर दूंगा। कुछ और जरूरत हुई पैसों की तो जैसे बाकी 3 बेटियों की शादी के लिए उधार लिया था, वैसे इसके लिए भी आपसदारी में कुछ लोगों से ले लूंगा।

पवन ने बताई अपनी मुफलिसी की कहानी
पवन जल्लाद ने आगे कहा, ‘यह तो भगवान का शुक्रिया है कि दिल्ली की अदालत ने इन चारों को फांसी पर लटकाने का हुक्म सुना दिया। वरना जिंदगी अब बेजार सी लगने लगी है। कई साल पहले भूमिया पुल (मेरठ) इलाके में पुश्तैनी मकान था। वह बारिश में ढह गया। उस दिन पत्नी मकान के मलबे में दब गई। बड़ी कोशिशों से उसे ढहे मकान के मलबे से निकाला गया, तभी से मैं अब मेरठ जिला प्रशासन से कांशीराम आवास योजना के तहत मिले एक छोटे से मकान में जिंदगी के दिन-रात जैसे-तैसे रो-पीटकर काट रहा हूं। 3 बड़ी बेटियों की शादी को उधार लिए 5-6 लाख रुपये अभी तक नहीं निपटे। नकद पर ब्याज और चढ़ता जा रहा है। अब तो साहब बस 22 जनवरी 2020 का इंतजार है, ताकि मैं तिहाड़ जेल जाकर उन चारों को लटका कर अपना एक लाख मेहनताना तिहाड़ जेल अफसरों से ले सकूं।’

पवन ने दादा के साथ दी थी आखिरी फांसी
पवन ने कहा, ‘मुझे यूपी जेल विभाग से हर महीने 5 हजार रुपये मिलते हैं। जहां प्याज 150 रुपये किलो मिल रहा हो तो सोचिए वहां इतने में 8-9 लोगों के परिवार का खर्च कैसे चलता होगा। हमारी कोई पुश्तैनी जमीन-जायदाद भी नहीं थी, जिसके सहारे बुढ़ापा कट जाए। अब सिर्फ कुछ उम्मीदें हैं तो निर्भया के हत्यारों की फांसी, तिहाड़ और यूपी जेल के अफसरों से।’ पवन को उम्मीद है कि निर्भया के हत्यारों की फांसी के बाद शायद उसे यूपी और तिहाड़ जेल के अफसरों से भी कुछ इनाम मिले। अपने जीवन की अंतिम फांसी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘जहां तक मुझे याद है, वह समय 1988-89 का था। आगरा सेंट्रल जेल में बुलंदशहर के एक रेपिस्ट और हत्यारे को दादा कालू राम जल्लाद के साथ लटकाने गया था। शायद उस जमाने में 200 रुपये मेहनताने में दादा को मिले थे। मैं यही सोचकर तब खुश था कि फोकट में ही सही, दादा के साथ कम से कम फांसी लगाना तो सीख रहा हूं।’

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