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ओवैसी बढ़ा सकते हैं अखिलेश की मुश्किलें! कर सकते हैं सपा का बड़ा नुकसान

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ओवैसी के यूपी में चुनाव लड़ने से सपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। क्योंकि यहां पर सपा को हर पार्टियों की अपेक्षा मुस्लिम मतदाताओं का करीब 50 से 60 प्रतिशत वोट मिलता रहा है। ऐसे में ओवैसी जातीय समीकरण के साथ मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Published on: December 17, 2020 14:47 IST

लखनऊ. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में अभी करीब 15 माह का समय है। लेकिन प्रदेश के अलावा दूसरे राज्यों के सियासी दल यहां की राजनीति में अपने भविष्य की संभावनाओं पर सक्रिय हो गए हैं। आम आदमी पार्टी के बाद ऑल इंडिया मजलिस-ए- इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एमआईएमआईएम) ने ताल ठोकने का मन बना लिया है। पार्टी के नेता असदुद्दीन ओवैसी बुधवार को राजधानी लखनऊ में थे। इस दौरान उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर से मुलाकात की। दोनों के मिलने के बाद यूपी का सियासी पारा चढ़ गया है। ऐसा अंदेशा लगाया जा रहा है उनके यहां चुनाव लड़ने से मुस्लिमों का बड़ा खेमा समाजवादी पार्टी से छिटक कर ओवैसी के पाले में जा सकता है। इससे सपा के लिए मुश्किलें खड़ी होंगी।

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सपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं!

राजनीतिक विशेषज्ञों की मानें तो ओवैसी के यूपी में चुनाव लड़ने से सपा के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं। क्योंकि यहां पर सपा को हर पार्टियों की अपेक्षा मुस्लिम मतदाताओं का करीब 50 से 60 प्रतिशत वोट मिलता रहा है। ऐसे में ओवैसी जातीय समीकरण के साथ मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं। चाहे कांग्रेस हो या बसपा अब आम आदमी पार्टी भी मुस्लिम वोटों को लुभाने के लिए भाजपा पर हमला करते हैं। अगर मुस्लिम वोटों का बंटवारा हुआ तो सीधा नुकसान सपा को होगा। ऐसे में सपा को अपना मुस्लिम वोट बैंक बचाने के लिए रणनीति पर बदलाव करना होगा। भाजपा को बस थोड़ा बहुत राजभर वोटों का नुकसान हो सकता है, लेकिन ओवैसी की मौजूदगी से विपक्ष के वोटों में बिखराव से उसकी भरपाई हो जाएगी।

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जेल में हैं आजम खान
वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक राजीव श्रीवास्तव कहते हैं कि एआईएमआईएम ओवैसी की पार्टी सपा के लिए बड़ी चुनौती बन सकती है। क्योंकि वो सपा के वोट बैंक पर डायरेक्ट सेंधमारी कर सकती है। अगर ओवैसी की पार्टी विधानसभा चुनाव में जोर-शोर से उतरी तो धुव्रीकरण होगा जिसका लाभ भाजपा को होगा। उदाहरण बिहार का विधानसभा चुनाव और हैदराबाद नगर-निगम चुनाव है। यही नहीं, यूपी का इतिहास देखा जाए तो जब-जब सपा ने अपने को मुस्लिम वोटों का हितैषी बन चुनाव लड़ा है तब-तब भाजपा को फायदा मिला है। चाहे 2017 का चुनाव हो, चाहे 1991 का चुनाव रहा हो। ऐसे में धुव्रीकरण होता है। उसमें हिन्दुओं के एकजुट होने की संभावना रहती है। जिसका भाजपा प्रचार करती रही है। इससे ओवैसी सपा के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकते हैं। इसके लिए सपा को रणनीति बदलनी होगी। भाजपा को फायदा दिख रहा है। ओवैसी एक प्रखर वक्ता हैं। मुस्लिमों के लिए खुलकर बात रखतें है। जबसे भाजपा सत्ता में आयी है तब से सपा मुस्लिमों को लुभाने में पीछे रही है। बैकफुट में इसलिए भी है कि उनके बड़े नेता आजम खान जेल में हैं। ओवैसी की पार्टी से सपा को ज्यादा खतरा है।

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पांच सालों से तैयारी कर रहे हैं- AIMIM
उधर एमआईएमआईएम के उत्तर प्रदेश अध्यक्ष शौकत अली ने कहा कि विपक्षी दल सिर्फ हम पर भाजपा का 'बी' टीम होने का सिर्फ आरोप लगाते हैं। बिहार चुनाव में हमसे किसी ने संपर्क नहीं किया। हमें इग्नोर किया गया है। फिर रोना क्यों रो रहे हैं। अगर हम भाजपा की 'बी' टीम होते तो तेलांगाना में भाजपा की हुकुमत होती। इसे हम खारिज करते हैं। आप यहां से चुनाव लड़ रहे हैं वह किसकी टीम है। हम यहां पांच सालों से तैयारी कर रहे हैं। मुस्लिमों को लुभाने का काम यहां पर सपा बसपा ने किया है। हम संगठन तेजी से खड़ा कर रहे हैं। 25 प्रतिशत यूपी की विधानसभा चुनाव लड़ेगें। भाजपा को रोकने के लिए सभी को एक प्लेटफार्म में आना चाहिए। मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर सपा-बसपा अगर मुस्लिम प्रत्याशी नहीं देती है तो हम भाजपा को हरा देंगे। क्योंकि सपा, बसपा और सपा कांग्रेस एक होकर भी भाजपा को नहीं रोक सके हैं।

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सपा बोली- चुनाव लड़ना सबका अधिकार
सपा के मुख्य प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने एआईएमआईएम के यूपी विधानसभा में चुनाव लड़ने को लेकर कहा कि लोकतंत्र में सबका अधिकार चुनाव लड़ने का होता है। इससे नफा-नुकसान का कोई मतलब नहीं है। सपा बड़ी, विकल्प और मुख्यधारा की पार्टी इससे किसी भी पार्टी के चुनाव लड़ने का कोई फर्क नहीं पड़ेगा। (IANS)

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