नई दिल्ली: नारायण दत्त तिवारी के विश्वासपात्र और करीबी शिष्य रहे यशपाल आर्य ने दो दिन पहले ही अपने पुत्र संजीव आर्य के मोह में बीजेपी में शामिल हुए थे। बीजेपी ने पिता-पुत्र को तुरंत टिकट भी फाइनल कर दिया। अब उनके गुरु नारायण दत्त तिवारी ने भी अपने चेले की राह पकड़ ली है। नाराय़ण दत्त तिवारी और ने अपने बेटे के साथ दिल्ली में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की और बीजेपी का दामन थाम लिया। एनडी तिवारी और यशपाल आर्य दोनों गुरु चेले का कांग्रेस से विदा होने का कारण पुत्र मोह ही है। यानी दोनों नेता अपने पुत्रो को राजनीति में स्थापित करना चाहते है।
इससे पहले उत्तराखंड में हरीश रावत सरकार के 9 कांग्रेसी विधायक बगावत कर चुके हैं, लेकिन अभी भी बगावत के तेवर काम नहीं हो रहे है। सरकार से लेकर कांग्रेसी कार्यकर्त्ता तक हैरत है। नारायण दत्त तिवारी ने बगावती तेवर पहली बार नहीं अपनाये है, इससे पहले भी वो कांग्रेस से बगावत कर चुके है। लेकिन तब उनके नाम का सिक्का चलता था। उन्हें विकास पुरुष के रूप में जाना जाता था। अब उनकी ऐसी उम्र नहीं रही है कि उनकी बगावत से कोई बहुत बड़ा समीकरण बदल जाए।
अगर नारायण दत्त तिवारी के राजनितिक सफर पर नज़र डाले तो उनका जन्म 1925 में नैनीताल जिले के बलूती गांव में हुआ था। शुरूआती शिक्षा हल्द्वानी, नैनीताल और बरेली में हुई। इसके बाद इलाहाबाद विश्विद्यालय से राजनितिक शास्त्र में एम.ए, एलएलबी किया। उन्होंने 1942 में स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ कर ब्रिटिश हकूमत के खिलाफ पोस्टर और पम्पलेट छापे थे जिसके कारण उन्हें जेल जाना पड़ा था। 15 महीने जेल में रहने के बाद उन्हें 1944 में रिहा किया गया था।
उन्होंने 1947 में छात्र राजनीति से अपनी सियासी पारी शुरू की। 1950 में देश की आज़ादी के बाद उत्तर प्रदेश का गठन हुआ था। 1951-52 के पहले विधानसभा चुनाव में युवा तिवारी ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़ा और कांग्रेस के प्रत्याशी को हराकर पहली विधान सभा में पहुचने में कामयाब रहे। विधायक बनने के दो साल बाद 1954 में उनकी शादी डा. सुशीला सनवाल से हो गई। 1993 में उनकी पत्नी का निधन हुआ। लेकिन उनके कोई संतान नहीं हुई।
कांग्रेस में नारायण दत्त तिवारी ने अपनी पारी की शुरुआत 1963 में की। 1965 में नैनीताल जिले की काशीपुर विधान सभा (अब ऊधम सिंह नगर जिला) से कांग्रेस (I) के टिकट पर विधानसभा पहुंचे और उन्हें पहली बार मंत्री बनने का मौका मिला। हेमवती नंदन बहुगुणा के बाद एक जनवरी 1976 को उन्हें उत्तर प्रदेश जैसे विशाल राज्य का मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसके बाद कुल तीन बार वो उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे।
1991 के लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा के बलराज पासी से शिकस्त खानी पड़ी, जिससे कारण वो देश के प्रधानमंत्री बनते-बनते रह गये। उस समय नरसिम्हा राव को प्रधानमंत्री का पद मिला। एनडी तिवारी को जब आंध्र प्रदेश का गवर्नर बनाया तो एक न्यूज़ चैंनल ने उनका स्टिंग कर लिया जिससे उन्हें राज्यपाल के पद से हाथ धोना पड़ा।
अब राजनीति के बाद उनके पुत्र रोहित शेखर की कोर्ट द्वारा एंट्री हुई। 2014 में नारायण दत्त तिवारी ने उज्ज्वला शर्मा से विवाह कर लिया। कांग्रेस से बढ़ती दूरियों के बाद उत्तर प्रदेश में उन्होंने पनाह ली और मुलायम सिंह कसे नज़दीकियों के चलते अखिलेश सरकार ने उनके पुत्र को राज्यमंत्री स्तर की सुविधाएं प्रदान की। अब अपने पुत्र को राजनीति की पारी खिलाने के लिए भाजपा में शामिल हो गए है। अब देखना यह होगा कि इस कदावर नेता का यह नया अवतार उत्तराखंड में क्या गुल (कमल) खिलाता है या फिर उनका राजनीतिक कद बौना होता है।