लखनऊ: पुरवाई की मार और आंधी के कहर की वजह से इस बार फलों के राजा आम की पैदावार में 65 प्रतिशत से ज्यादा की गिरावट आने की आशंका है, लिहाजा इस दफा आम बेहद खास होने जा रहा है और इसका जायका लेने के लिये जेब काफी ढीली करनी पड़ सकती है। लिहाजा हालात से बेजार आम उत्पादकों ने सरकार से खुद को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दायरे में लाने की मांग की है।
ऑल इण्डिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष इंसराम अली ने आज भाषा से बातचीत में कहा कि पिछले साल आम की रिकॉर्ड 44 लाख मीट्रिक टन पैदावार हुई थी, मगर इस बार तस्वीर बिल्कुल उलट है। इस दफा 15 लाख मीट्रिक टन उत्पादन हो जाए तो बड़ी बात होगी।
उन्होंने कहा कि इस बार अनुमान से से पहले ही लगातार पुरवा हवा चल रही है, जिससे आम में रज्जी (एक तरह की बीमारी) लग गयी है। आम काश्तकारों को पेड़ों पर दवा का छिड़काव सामान्य से दोगुना अधिक करना पड़ रहा है। पहले से परेशान आम काश्तकारों की रही-सही कसर आंधियों ने पूरी कर दी। अली ने बताया कि आम की पैदावार में करीब 65 प्रतिशत की भारी गिरावट के मद्देनजर यह तय है कि इस बार आम लोगों के लिये आम खरीदना मुश्किल होगा।
प्रदेश में करीब ढाई लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले बागों में आम का उत्पादन होता है। यह पट्टी दशहरी आम उत्पादन के लिये मशहूर लखनऊ के मलीहाबाद, बुलंदशहर, सहारनपुर, बाराबंकी, प्रतापगढ़, हरदोई के शाहाबाद, उन्नाव के हसनगंज, अमरोहा तक फैली है, लेकिन इस बार यहां के बागवान मायूस हैं। अली ने कहा कि राज्य सरकार ने किसानों की कर्जमाफी की बात कही है लेकिन आम बागवान के लिये ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है।
अली ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पिछले हफ्ते पत्र लिखकर मांग की गयी कि आम बागवानों को भी किसानों का दर्जा दिया जाए और आम उत्पादकों को भी प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के दायरे में लाया जाए ताकि अगर मौसम की वजह से फसल को नुकसान हो तो उसकी भरपाई की जा सके।
उन्होंने कहा कि इस बार आम के कारोबारियों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा, जो उनके लिये बेहद मुश्किल हालात पैदा कर देगा। अली ने कहा कि ऑल इण्डिया मैंगो ग्रोवर्स एसोसिएशन को और शक्तियां दी जानी चाहिए। उद्यान विभाग की विभिन्न समितियों में संगठन के नुमाइंदों को शामिल किया जाना चाहिये ताकि आम के कारोबार को लेकर बनायी जाने वाली नीतियों के निर्माण में उनकी राय शामिल की जा सके।
उन्होंने कहा कि सरकार को आम के बागानों में सिंचाई के लिये लगे नलकूपों में खर्च होने वाली बिजली का शुल्क माफ करना चाहिए। साथ ही आम निर्यातकों को किराये में अनुदान भी दिया जाना चाहिए।