प्रयागराज: महुआ का जिक्र आने पर इसे केवल देसी शराब का स्रोत मानने वालों के लिए यह जानकारी दिलचस्प हो सकती है कि महुआ पोषक तत्वों की खान है और यह महिलाओं विशेषकर ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं में आम तौर पर होने वाली खून की कमी जैसी समस्या को दूर कर सकता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय द्वारा किए गए एक अध्ययन में यह तथ्य सामने आया है।
विश्वविद्यालय के गृह विज्ञान विभाग की एसोसिएट प्रोफेसर और न्यूट्रीशनल बायोकेमिस्ट्री विशेषज्ञ नीतू मिश्रा के नेतृत्व में सेंटर फॉर फूड टेक्नोलॉजी की पीएचडी की छात्रा जेबा खान और अन्य विद्यार्थियों ने मांडा खास, मउहारी, निवेरिया और भरारी गांव में 200 से अधिक महिलाओं को इस अध्ययन में शामिल किया।
नीतू मिश्रा ने बताया कि महिलाओं को दो समूहों में बांटा गया। एक समूह को महुआ और इससे बने खाद्य उत्पाद खिलाए गए, जबकि दूसरे समूह को इससे वंचित रखा गया। यह प्रयोग एक महीने तक चला। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं को महुआ से बने खाद्य उत्पाद खिलाए गए, उनके खून में एनीमिया का स्तर कम होता पाया गया। केंद्र सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग की इस परियोजना पर आगे और काम किया जाएगा।
मिश्रा ने कहा कि ग्रामीण इलाकों में महिलाओं में एनीमिया का स्तर बहुत ऊंचा है और इसे ठीक करने के लिए स्थानीय स्तर पर महुआ जैसी कई चीजें उपलब्ध हैं। लेकिन अज्ञानता की वजह से लोग इसका लाभ नहीं उठाते। उन्होंने बताया कि आजकल गांव में महुआ बीनने वाले लोग नहीं मिलते जिससे यह पेड़ों से गिरकर खराब हो जाता है और भेड़ बकरियां इसे चर जाती हैं। वहीं दूसरी ओर शराब की भट्ठी चलाने वाले लोग महुआ खरीद लेते हैं।
मिश्रा ने बताया कि भारत में परंपरागत तौर पर महुआ, इसके फूल और पत्तियों का कई बीमारियों की रोकथाम और इलाज में उपयोग किया जाता रहा है। इसके फूल का उपयोग ब्रोंकाइटिस, मुंह के छाले और अन्य कई बीमारियों के इलाज में उपयोग किया जाता रहा है। महुआ के पेड़ की छाल का उपयोग मधुमेह, गठिया, रक्तस्राव, अल्सर, टांसिलाइटिस, गले में सूजन के इलाज में किया जाता है। इस तरह से महुआ के पेड़ की सभी चीजों का उपयोग किसी न किसी बीमारी के इलाज में किया जाता है।
उन्होंने बताया कि इस परियोजना के लिए जानबूझकर ऐसे गांवों का चयन किया गया जहां बहुत गरीबी है और इस अध्ययन में वहां के प्राथमिक चिकित्सा केंद्रों की आशा बहुओं ने महिलाओं के रक्त के नमूने लेने और अन्य कार्यों में मदद की। मिश्रा ने बताया कि इस अध्ययन में महुआ से हाथ से ही खाद्य उत्पाद तैयार करने पर जोर दिया गया जिससे ग्रामीण क्षेत्र की महिलाएं बिना किसी मशीन की सहायता के इसे तैयार कर सकें। इनमें लड्डू, पुआ और गुलगुले जैसे व्यंजन शामिल हैं।