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महाराष्ट्र जैसा ही हाल 1989 में यूपी में हुआ था, मुलायम सिंह ने पलटी थी सियासी बाजी

महाराष्ट्र में आज जो हो रहा है, साल 1989 में उत्तर प्रदेश में ऐसा ही हुआ था। आश्चर्यजनक रूप से घटनाओं का क्रम समान है, जिससे राज्य की राजनीति जटिलताओं में बदलाव आया है...

Reported by: IANS
Published on: November 24, 2019 17:13 IST
Mulayam Singh Yadav- India TV Hindi
Mulayam Singh Yadav

लखनऊ: महाराष्ट्र में आज जो हो रहा है, साल 1989 में उत्तर प्रदेश में ऐसा ही हुआ था। आश्चर्यजनक रूप से घटनाओं का क्रम समान है, जिससे राज्य की राजनीति जटिलताओं में बदलाव आया है। तत्कालीन जनता दल का गठन जनता पार्टी, जनमोर्चा, लोकदल (ए) और लोकदल (बी) के विलय से हुआ था। इस दल ने साल 1989 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी और चौधरी अजित सिंह के नाम का ऐलान पार्टी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हुआ था।

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उस साल जनता दल ने 208 सीटें जीती थीं, और बहुमत में छह विधायकों की कमी थी। उत्तराखंड के निर्माण से पहले उत्तर प्रदेश विधानसभा में 425 सदस्य थे और 213 इसमें शामिल थे। तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने घोषणा की थी कि चौधरी अजित सिंह मुख्यमंत्री बनेंगे और मुलायम सिंह यादव उपमुख्यमंत्री होंगे।

जब जनता दल सरकार के भव्य शपथ ग्रहण समारोह की तैयारी की जा रही थी, तब मुलायम सिंह यादव ने उपमुख्यमंत्री पद लेना अस्वीकार करते हुए मुख्यमंत्री के पद का दावा ठोक दिया और जनमोर्चा गुट के विधायकों द्वारा उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ।

तत्कालीन प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने तब फैसला लिया कि मुख्यमंत्री अब एक गुप्त मतदान के माध्यम से तय किया जाएगा। मधु दंडवते, मुफ्ती मोहम्मद सईद और चिमनभाई पटेल जैसे वरिष्ठ नेताओं को पर्यवेक्षकों के रूप में लखनऊ भेजा गया, ताकि वे मुलायम सिंह यादव को चौधरी अजीत सिंह को मुख्यमंत्री के रूप में स्वीकार करने के लिए मना सकें।

मुलायम नहीं माने और तत्कालीन माफिया डॉन डी.पी. यादव के सहयोग से अजीत सिंह के ग्यारह वफादारों को वह अपने शिविर में लाने में सफल रहे। वरिष्ठ नेता बेनी प्रसाद सिंह ने भी इस 'पावर गेम' में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

गुप्त मतदान का आयोजन उप्र विधानसभा के सेंट्रल हॉल में किया गया था और मुलायम सिंह यादव अपने प्रतिद्वंद्वी को पांच वोटों से हराकर मुख्यमंत्री बने। उन्होंने 5 दिसंबर, 1989 को पहली बार मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली। इसके बाद, मुलायम सिंह यादव उप्र की राजनीति में एक प्रमुख खिलाड़ी बन गए, जबकि पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे अजित सिंह राज्य की राजनीति में कभी पांव नहीं जमा पाए।

साल 1992 में मुलायम जनता दल से अलग हो गए और अपनी खुद की समाजवादी पार्टी का गठन किया, उधर अजित सिंह ने 1998 में राष्ट्रीय लोक दल बना लिया, जो आज भी वजूद में है। विभिन्न चुनावों में ये दोनों पार्टियां साथ आईं, लेकिन इन दो नेताओं में अनबन कभी पूरी तरह से दूर नहीं हई और उनके बीच रिश्ता कभी सुदृढ़ नहीं हुआ।

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