नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश का अमेठी देश के उन जिलों में शुमार है, जहां अब तक कोरोना वायरस का एक भी केस सामने नहीं आया है। सरकार ने इसे सुरक्षित जिलों की लिस्ट में रखा है। कोरोना की लड़ाई में मिली इस सफलता के पीछे वहां के दो युवा अफसरों की सूझबूझ और रणनीति है। डीएम अरुण कुमार और एसपी डॉ. ख्याति गर्ग ने जिस तरह से लॉकडाउन के दौरान जिले में निगरानी तंत्र को मजबूत किया, लोगों की समस्याओं का समाधान करते हुए घर-घर जरूरी सुविधाओं की व्यवस्था की, उससे यहां लॉकडाउन का पालन हुआ। सोशल डिस्टैंसिंग धरातल पर दिखा। नतीजा रहा है कि इस जिले को अब तक कोरोना छू नहीं सका है। अमेठी से सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी भी जिले के दोनों शीर्ष अधिकारियों से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए रूबरू होकर उनका हौसला बढ़ाती हैं।
पिछले साल नवंबर में अमेठी के डीएम का चार्ज संभालने वाले 2012 बैच के 35 वर्षीय आईएएस अरुण कुमार आइआइटियन हैं। मूलत: बरेली के रहने वाले और आइआइटी कानपुर से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग डिग्रीधारी अरुण कुमार इन दिनों जहां कोरोना के खिलाफ मुहिम में अपने आइआइटियन दिमाग और तकनीकी हुनर का इस्तेमाल कर रहे हैं, वहीं एसपी डॉ. ख्याति गर्ग अपने मेडिकल एजुकेशन का भरपूर इस्तेमाल कर रहीं हैं। मूलत: हरियाणा की रहने वालीं 2013 बैच की 31 वर्षीय आईपीएस डॉ. ख्याति गर्ग के पास एमबीबीएस की डिग्री है। अफसरों के काम को यहां की जनता पसंद भी कर रही। कुछ तस्वीरें भी सामने आईं, जिसमें अधिकारियों पर लोग फूल बरसाते नजर आ रहे हैं।
डीएम अरुण कुमार कहते हैं, "जिला अब तक कोरोना वायरस से बचा हुआ है। यह टीम वर्क के कारण संभव हुआ है। हर तरह की एहतियात बरती जा रही है। लॉकडाउन और सोशल डिस्टैंसिंग के पालन पर जोर दिया जा रहा है। नए आइडियाज पर भी काम हो रहे हैं। इस लड़ाई में प्रशासन और जनता दोनों एक दूसरे के पूरक बने हुए हैं। उम्मीद है कि आगे भी सब इसी तरह ठीक रहेगा।"
कभी राहुल गांधी और अब स्मृति ईरानी का संसदीय क्षेत्र होने के नाते अमेठी हमेशा राजनीतिक कारणों से सुर्खियों में रही है। लेकिन मार्च से लेकर अब तक चल रही कोरोना के खिलाफ मुहिम में जिस तरह से यहां के प्रशासन ने मोर्चा संभाला है, उससे अब अमेठी मॉडल की चर्चा राष्ट्रीय स्तर पर होने लगी है। एक जुलाई 2010 को सुल्तानपुर जिले की अमेठी, गौरीगंज, मुसाफिरखाना और रायबरेली की तिलोई और सलोन तहसील को मिलाकर बने यूपी के इस 72वें जिले को कोरोना से बचाने के लिए यहां के प्रशासन ने एक नहीं अनेक पहल कीं। शुरुआती 21 दिनों के लॉकडाउन के दौरान डीएम और एसएसपी ने मिलकर कुल 50 कदम उठाए।
लॉकडाउन के दौरान बाहर से आए 4412 लोगों को धारा 188 आईपीसी के तहत समय रहते नोटिस देकर सचेत कर दिया कि अगर उन्होंने कहीं मूवमेंट किया तो फिर खैर नहीं होगी। 4983 लोगों के घर पर आइसोलेशन का लाल नोटिस चस्पा कर उन्हें ही नहीं पड़ोसियों को भी सख्त हिदायत जारी की गई। वहीं बाहर से आए 7086 लोगों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें 295 अस्थाई कैंप में रखा गया। लॉकडाउन के दौरान गरीब भूखे न रहें, इसके लिए जिले में 52 स्थानों पर भोजन की व्यवस्था की गई। प्रशासन के स्तर से 23 सरकारी किचेन से भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है। दवाओं और राशन की होम डिलीवरी की व्यवस्था हुई।
लॉकडाउन तोड़ने से लेकर सरकारी सुविधाओं को जरूरतमंदों तक पहुंचाने में गड़बड़ी करने वालों पर भी प्रशासन ने सख्ती दिखाई। राशन वितरण में धांधली करने वाले छह कोटेदारों पर मुकदमे के साथ राशन की 11 सरकारी दुकानें डीएम अरुण कुमार ने निलंबित कीं। एसपी डॉ. ख्याति गर्ग के निर्देशन में पुलिस ने सड़कों पर निगरानी तेज की। लॉकडाउन का उल्लंघन करने वाले 230 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया तो 76 वाहन भी सीज किए।
लाभार्थियों को घर पर मिली सुविधाएं
बैंकों पर भीड़ उमड़ने से रोकने के लिए डीएम अरुण कुमार ने माइक्रो एटीएम की गांव-गांव सुविधा की। ताकि किसान लोग खाते में आए दो हजार और जनधन योजना की महिलाएं पांच सौ रुपये बगैर बैंक जाए घर पर ही निकाल सकें। इसके लिए डाकघर कर्मियों की बैंक मित्र के तौर पर ड्यूटी लगाई गई। अब तक 1872 खाताधारक डाक विभाग से संचालित माइक्रो एटीएम के जरिए 33.32 लाख रुपये की धनराशि घर बैठे ही निकाल सके हैं।
जिला प्रशासन की सूची के मुताबिक, लॉकडाउन के दौरान अब तक वृद्धावस्था पेंशन के 78413, निराश्रित महिला पेंशन के 26011 और दिव्यांग पेंशन के 10709 लाभार्थियों के खाते में धनराशि भेज दी गई है। वहीं मनरेगा योजना के 67125 लाभार्थियों के खाते में भी 22.11 करोड़ रुपये भेजे गए। लॉकडाउन के दौरान 837 गर्भवती महिलाओं के घर पर ही हेल्थ चेकअप से लेकर पोषाहार की व्यवस्था हुई। तीन लाख 70 हजार जन-धन खाताधारक महिलाओं के खाते में भी पांच-पांच सौ रुपये भेजे जा चुके हैं। निर्माण श्रमिकों को भी एक-एक हजार रुपये की मदद दी जा चुकी है।