लखनऊ: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ‘राम भरोसे’ वाले आदेश के बाद अब योगी सरकार के कोरोना प्रबंधन को सराहा है। हाईकोर्ट ने छोटे जिलों बहराइच, श्रावस्ती, बिजनौर, बाराबंकी और जौनपुर में चिकित्सा बुनियादी ढांचे को बढ़ाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा उठाए गए कदमों पर संतोष व्यक्त किया। इसके अलावा, कोर्ट ने केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वह फिजिकल रूप से विकलांग व्यक्तियों को वैक्सीनेशन के संबंध में एक नीति के साथ आए, जिन्हें वैक्सीनेशन सेंटर्स तक पहुंचने में कठिनाई होती है।
अदालत ने उम्मीद जताई कि अन्य जिलों में भी इसी तरह के प्रयास किए जाएंगे। न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा और न्यायमूर्ति अजित कुमार की पीठ ने राज्य में कोविड-19 के प्रसार और पृथक-वास केंद्रों की स्थिति को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही। पीठ ने कहा, “सुनवाई की अगली तारीख पर राज्य सरकार और पांच जिलों- भदोही, गाजीपुर, बलिया, देवरिया और शामली में चिकित्सा सुविधाओं में सुधार के संबंध में रिपोर्ट दाखिल कर सकती है।”
पीठ ने आगे कहा, “हम पाते हैं कि डायग्नोस्टिक्स शुल्क की सीमा तय करने के लिए संतोषजनक कार्य किया गया है। आरटी-पीसीआर जांच के संबंध में शुल्क 500 रुपसे से 900 रुपये के दायरे में है। वहीं एंटिजेन जांच के लिए शुल्क 200 रुपये निर्धारित किया गया है। वहीं ट्रू नैट प्राइवेट टेस्ट के लिए शुल्क 1200 रुपये तय किया गया है।”
जहां तक दिव्यांग लोगों के टीकाकरण का संबंध है, राज्य सरकार के वकील ने बताया कि राज्य सरकार, इस संबंध में केंद्र के दिशानिर्देशों का अनुपालन करेगी। सुनवाई की अगली तारीख तक केंद्र सरकार उन दिव्यांग लोगों के लिए टीकाकरण पर रुख स्पष्ट कर सकती है जो टीकाकरण केंद्रों तक आने में असमर्थ हैं। अदालत इस जनहित याचिका पर अगली सुनवाई 7 जून, 2021 को प्रारंभ हो रहे सप्ताह में करेगी।
बता दें कि पिछले हफ्ते, हाईकोर्ट ने COVID-19 पर स्वत: संज्ञान मामले में सुनवाई करते हुए राज्य में कमजोर और जर्जर चिकित्सा बुनियादी ढांचे पर सरकार के खिलाफ कड़ी आलोचनात्मक टिप्पणी की थी। इसने स्थिति को सुधारने के लिए सरकार द्वारा किए जाने वाले उपायों की एक सीरीज का सुझाव दिया था।
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