नोएडा (उप्र): दो इमारतों के ढहने से नौ लोगों की मौत के दो साल बाद ग्रेटर नोएडा के शाहबेरी गांव के निवासियों की मांग है कि इस इलाके में अवैध निर्माण की जांच सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) से कराई जाए। पीटीआई के पास उपलब्ध सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 2018 में दो इमारतों के ढहने के बाद से शाहबेरी में करीब 1500 संपत्तियों का पंजीकरण हो चुका है और सबसे नवीनतम संपत्ति का पंजीकरण 14 जुलाई को ही किया गया है।
उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर का शाहबेरी इलाका ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण (जीएनआईडीए) द्वारा अधिसूचित इलाका है जहां उसकी मंजूरी लिये बगैर कोई निर्माण कार्य नहीं हो सकता। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भी 2014 में एक आदेश पारित किया था जिसमें शाहबेरी में किसी भी अवैध निर्माण पर रोक लगाई गई थी। शाहबेरी में ही 17 जुलाई 2018 को अगल-बगल बनी दो इमारतों के ढहने से एक बच्चे समेत नौ लोगों की मौत हो गई थी।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 24 जुलाई 2019 को अवैध निर्माण और हजारों जिंदगियों को जोखिम में डालने के लिये जिम्मेदार अधिकारियों और बिल्डरों की जवाबदेही तय करने का आह्वान किया था। वह नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना एक्सप्रेस-वे के अधिकारियों से बात कर रहे थे। एक आधिकारिक बयान में उन्हें उद्धृत करते हुए कहा गया, “अवैध निर्माण में लगे अफसरों और बिल्डरों की जवाबदेही तय की जानी चाहिए। हजारों निवासियों की जिंदगी से खेलने वालों को जेल भेजा जाना चाहिए और प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए। उनपर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत मामला चलना चाहिए।”
स्थानीय लोगों का दावा है कि आईआईटी दिल्ली ने शाहबेरी में इमारतों के निर्माण की गुणवत्ता की एक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें पाया गया कि अधिकांश ढांचे असुरक्षित हैं और इनकी उम्र महज 10 साल होगी। शाहबेरी के निवासी अभिनव खरे ने कहा, “स्थानीय प्रशासन, पुलिस और अफसरों से हमारा भरोसा उठ चुका है, हम चाहते हैं कि उप्र सरकार यहां अवैध निर्माण की सीबीआई या प्रवर्तन निदेशालय से जांच कराए।” बैंक में काम करने वाले खरे उस इमारत से महज 100 मीटर दूर रहते हैं जो 2018 में ढही थीं और कहा कि इमारत की गुणवत्ता पर रिपोर्ट आने केबाद से यहां लोड डर में रह रहे हैं। यहां 2016 में फ्लैट लेनेवाले खरे ने आरोप लगाया, “जीएनआईडीए और प्रशासन हमारी पीड़ा के लिये जिम्मेदार हैं क्योंकि अदालत के आदेश के बावजूद निर्माण और रजिस्ट्री अवैध रूप से चल रहा है। बिल्डर ने हमें कहा था कि रजिस्ट्री हो रही है जिसका मतलब है कि अन्य लोग वहां रह रहे हैं, जिसका मतलब सभी फ्लैट वैध हैं। यहां तक कि बैंक ने बिना नक्शे की मंजूरी की जांच किये गृह-कर्ज की पुष्टि कर दी। हमें धोखा दिया गया।”
एक और निवासी नेहा सिंह ने सितंबर 2017 में इलाके में फ्लैट लिया। उन्होंने कहा कि दो महीने बाद उन्हें पता चला कि कुछ अन्य लोगों की तरह उनके साथ भी बिल्डर ने धोखा किया क्योंकि उन्हें अवैध रूप से निर्मित फ्लैट बेच दिये। उन्होंने कहा कि बिल्डर ने हमें नक्शा और अन्य प्रमाण-पत्र दिखाये थे लेकिन बाद में पता चला कि वो सब जाली दस्तावेज थे। हमें पता चला कि हम जिस पांच मंजिला इमारत में रह रहे हैं वह अवैध है। इस इमारत में 15 फ्लैट में 11 परिवार रह रहे हैं और हमारा भविष्य अनिश्चित है। स्थानीय पुलिस ने महिला की शिकायत पर जून 2018 में शाहबेरी में अवैध निर्माण पर प्राथमिकी भी दर्ज की थी। यह दोहरी इमारतों के गिरने के एक महीने पहले की बात है।
पीटीआई ने शाहबेरी में हो रही अवैध रजिस्ट्री के संदर्भ में जिलाधिकारी सुहास एल वाई से संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई। संपर्क किये जाने पर जीएनआईडीए के मुख्य कार्यकारी अधिकारी नरेंद्र भूषण ने कहा कि किसी को भी ऐसी जगह फ्लैट या संपत्ति नहीं खरीदनी चाहिए जिसका नक्शा ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण से स्वीकृत नहीं है। भूषण ने पीटीआई को बताया, “प्राधिकरण किसी भी ऐसी इमारत की सुरक्षा की जिम्मेदारी नहीं ले सकता जिसका निर्माण उसके द्वारा अधिकृत न हो। लोगों को जोखिम से बचना चाहिए।” पिछले साल शाहबेरी में अवैध निर्माण के खिलाफ एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का भी गठन हुआ था। एसआईटी का हिस्सा एक अधिकारी ने बताया कि करीब 80 एफआईआरदर्ज हुई थीं और जनवरी 2020 तक करीब 50 बिल्डरों के खिलाफ कार्रवाई की गई। (इनपुट-भाषा)