बलरामपुर (उप्र): कोरोना के इस दौर में रिश्तों और विडम्बनाओं से जुड़े अनेक किस्से रोज जन्म ले रहे हैं। प्रवासी मजदूरों पर आपदा की अंतहीन घटनाओं में ताजा मामला बलरामपुर की एक महिला और उसकी तीन साल की पोती का है। अपनी दादी के साथ हर जगह यहां तक कि कब्र तक जाने की भी जिद करने वाली बच्ची की यह ख्वाहिश आखिरकार उसकी नियति बन गई और घर लौटते वक्त एक हादसे में दोनों की मौत हो गई।
बलरामपुर के पनवापुर गांव के रहने वाले रईस अहमद (28) पिछले आठ साल से अहमदाबाद में रहकर मजदूरी करते थे। अहमद ने रविवार को बताया कि उसकी मां इशरत जहां (42) को अपनी पोती सोमैया से बेहद लगाव था। वह छह माह की उम्र से अपनी दादी के ही साथ रही। वह उसे पल भर के लिए भी नहीं छोड़ती थी। इशरत अक्सर सोमैया से पूछती थी कि क्या तुम कब्र में भी मेरा पीछा नहीं छोड़ोगी। इस पर वह कहती थी कि ''हां, मैं भी साथ चलूंगी।'' यह कहते ही अहमद फफककर रो पड़ा।
उसने बताया कि लॉकडाउन से करीब दो हफ्ते पहले उसने मां को इलाज के लिए अहमदाबाद बुलाया था। मां के साथ सोमैया भी जिद करके आई थी। उसने बताया कि अचानक लॉकडाउन हुआ और जब बचाकर रखे गए पैसे खत्म हो गए तो अपनी मां और भतीजी सोमैया को अपने गांव वालों के साथ एक ट्रक बुक कराकर पनवापुर गांव की तरफ चल दिए। लेकिन 13 मई को यह ट्रक बलरामपुर पहुंचने से पहले कानपुर में कानपुर-झांसी राजमार्ग पर खड़े ट्रक से जा टकराया। इस हादसे में इशरत और सोमैया सहित तीन लोगों की मौत हो गई।
शनिवार को दादी-पोती का शव जब पनवापुर लाया गया तो पूरा गांव शोक में डूब गया। मृतका इशरत के पति अकबर अली की आंखें दादी-पोती के बीच हुई कब्र वाली बात को याद करके नम हो जाती है। जिलाधिकारी के. करुणेश ने रविवार को बताया कि दादी-पोती के शव को गांव के कब्रिस्तान में दफना दिया गया है। हादसे में मामूली रूप से घायल 16 लोगों को प्राथमिक उपचार के बाद पृथक केंद्र भेज दिया गया है।