गोरखपुर: आज योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं, और उन्हें इस कुर्सी तक पहुंचाने में गोरखपुर का बहुत बड़ा योगदान रहा है। दरअसल, योगी ने गोरखपुर लोकसभा सीट से जितनी बार चुनाव लड़ा, उतनी बार वह संसद में दाखिल होने में कामयाब रहे। उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें लोकसभा सांसद के पद से इस्तीफा देना पड़ा जिसके बाद गोरखपुर की सीट पर 11 मार्च को उपचुनाव कराए गए। इस उपचुनाव के नतीजे 14 मार्च को आने हैं, जिसके बाद पता चल पाएगा कि क्या योगी के गढ़ में उनके अलावा भी बीजेपी का वही दम है या विपक्ष यहां से सांसद भेजने की उम्मीद कर सकता है।
1998 के लोकसभा चुनावों में जब योगी आदित्यनाथ को गोरखपुर की जनता ने अपने सांसद के रूप में चुना तो उनकी उम्र महज 26 साल थी। इसके बाद उन्होंने 1999, 2004, 2009 और 2014 लोकसभा चुनावों में भी बड़े अंतर से जीत दर्ज की। अब गोरखपुर उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उपेंद्र दत्त शुक्ला पर दांव खेला है। विपक्ष की बात करें तो समाजवादी पार्टी से प्रवीण कुमार निषाद और और कांग्रेस से सुहिता चटर्जी करीम चुनावी मैदान में हैं। खास बात यह है कि सपा उम्मीदवार को पीस पार्टी और निषाद पार्टी के साथ-साथ बहुजन समाज पार्टी का भी समर्थन हासिल है।
अब यह तो 14 मार्च को ही साफ हो पाएगा कि तमाम दलों से गठबंधन का समाजवादी पार्टी को फायदा मिलता है या योगी आदित्यनाथ का जलवा अभी भी बरकरार रहता है। हालांकि चुनावी समीकरणों की बात करें तो 2014 के लोकसभा चुनावों में योगी आदित्यनाथ ने अकेले लगभग 52 प्रतिशत मतों पर कब्जा जमाया था। हालांकि उपचुनाव में वोटिंक प्रतिशत लगभग 47 प्रतिशत रहा है और ऐसे में यह अंदाजा लगाना मुश्किल है कि ऊंट किस करवट बैठेगा।