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खुद को मजबूत करने और फिर से यूपी की सत्ता में काबिज होने के लिए बसपा कर रही है इस रणनीति पर काम

उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण केन्द्र बिन्दु पर हैं। विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाकर एक माहौल भी तैयार किया है। बसपा को लगता है ब्राम्हण अगर सत्तारूढ़ दल से कटेगा तो उसे आसानी से लपका जा सकता है।

Written by: IndiaTV Hindi Desk
Updated on: October 09, 2020 16:06 IST
BSP strategy to win next uttar pradesh elections । खुद को मजबूत करने और फिर ये यूपी की सत्ता में काब- India TV Hindi
Image Source : TWITTER/IANS खुद को मजबूत करने और फिर ये यूपी की सत्ता में काबिज होने के लिए बसपा कर रही है इस रणनीति पर काम

लखनऊ. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने एक बार फिर ब्राम्हणों को अपने पाले में खींचने की मुहिम तेज कर दी है। बसपा को लगता है कि ब्राम्हण और दलितों का गठजोड़ कर दें तो आने वाले समय में आराम से सत्ता पर काबिज हो सकते हैं। तमाम दलों से गठबंधन और संगठन में अनेक प्रयोगों के बाद बसपा मानती है कि 2007 में बनी रणनीति के अनुरूप ही सफलता मिल सकती है। लिहाजा पार्टी ने फिर एक बार सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से पुराने फॉर्मूले को लागू करने की दिशा में कदम बढ़ाया है।

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पार्टी सूत्रों की मानें तो नवरात्रि से इस पर काम तेजी से शुरू हो जाएगा। एक बार फिर बड़े पैमाने पर ब्राम्हणों को जोड़ने की कवायद की जाएगी। पार्टी के एक नेता ने बताया कि ब्राम्हणों की समस्याओं और उसके निराकरण की जिम्मेदारी इस समय खुद महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा ने ले रखी है। वो जिलेवार लोंगों से मिल रहे हैं। उन्हें पूरा एक्शन प्लान भी बता रहे हैं। इसके अलावा बड़े ब्राम्हण नेता में शुमार रहे रामवीर उपाध्याय और ब्रजेश पाठक में विकल्प तलाशा जा रहा है। दूसरे दलों के ब्राम्हणों में प्रभाव रखने वाले बसपा से जोड़े जा रहे हैं। सभी जिलों में पांच प्रमुख नेताओं की टीम बनायी जा रही है जिसमें ब्राम्हण रखा जाना अनिवार्य है। इसके साथ ही पार्टी का युवा ब्राम्हण नेताओं पर खास फोकस है।

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उत्तर प्रदेश में पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण केन्द्र बिन्दु पर हैं। विपक्षी दलों ने खूब शोर मचाकर एक माहौल भी तैयार किया है। बसपा को लगता है ब्राम्हण अगर सत्तारूढ़ दल से कटेगा तो उसे आसानी से लपका जा सकता है। इसी कारण इन दिनों सोशल मीडिया पर इसके लिए तेजी से अभियान भी चलाए जा रहे हैं। इसी वोट के कारण मायावती 2007 में सत्ता पर काबिज हो चुकी है। सतीश चन्द्र मिश्रा के नेतृत्व में पूर्व मंत्री नकुल दुबे, अनंत मिश्रा, परेश मिश्रा समेत कई लोग ब्राम्हणों को पार्टी से जोड़ने की जिम्मेदारी निभा रहे हैं।

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पूर्व मंत्री नकुल दुबे ने कहा, "इन दिनों ब्राम्हण समाज के साथ जो उत्पात बढ़ा है, वह कैसे दूर हो, उन्हें क्या-क्या दिक्कतें आ रही है। इसके लिए महासचिव सतीश चन्द्र मिश्रा लोगों से मिल खुद फीडबैक ले रहे हैं। अभी तक हजारों लोगों से भेंट हो चुकी है। करीब 80 बैठकें भी हो चुकी है। प्रदेश में ब्राम्हणों का उत्पीड़न हो रहा है वह किसी से छिपा नहीं है। 2007 से 2012 के कार्यकाल को देंखें तो ब्राम्हण बसपा के साथ बहुत सुखी था।"

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वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक पी.एन. द्विवेदी कहते हैं कि पिछले कुछ दिनों से ब्राम्हण राजनीति के केन्द्र बिन्दु में घूम रहा है। हर पार्टी इसे अपने पाले में लाने के प्रयास में है। सपा ने परशुराम मंदिर बनवाने की बात कहकर अपना प्रेम दिखा रही है। लेकिन अभी चुनाव दूर है। ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त बताएगा। बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 12-13 प्रतिशत ब्राह्मण हैं, जिस पर सभी दलों की नजर है। बसपा भी इसे साधने की कोशिश में है। (IANS)

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