लखनऊ: उत्तर प्रदेश में कांग्रेस भले ही सत्ता के ख्वाब बुन रही है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने प्रदेश में पार्टी को नए नेतृत्व के हवाले तो कर दिया है, लेकिन पार्टी की अंदरूनी कलह थमने का नाम नहीं ले रही है। इसका असर 14 दिसंबर की दिल्ली रैली पर भी पड़ सकता है।
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता नए प्रदेश नेतृत्व से खुश नहीं हैं। इसकी बानगी लगातार देखी जा रही है। 10 वरिष्ठ नेताओं को बाहर किए जाने से पार्टी के भीतर पहले से असंतोष है। ऊपर से रायबरेली विधायक आदिति सिंह का दोनों बार नोटिस का जवाब न आने के बाद कांग्रेस विधानमंडल दल की मौजूदा नेता आराधना मिश्रा ने अब उनकी सदस्यता खत्म कराने के लिए प्रक्रिया शुरू कर दी है।
उन्होंने विधानसभा अध्यक्ष को याचिका दी है, जिसके बाद अब यह प्रक्रिया शुरू होगी। इसके पहले, कांग्रेस ने एमएलसी दिनेश प्रताप सिंह के भाई और रायबरेली की हरचंदपुर सीट से विधायक राकेश सिंह की सदस्यता खत्म करने की याचिका दी थी, जिस पर अब तक फैसला नहीं हुआ है, और याचिका विधान परिषद में विचाराधीन है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के राज्य समन्वयक मो़ नासिर ने इस्तीफा दे दिया है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजे इस्तीफे में उन्होंने कहा है कि प्रदेश में अवैधानिक रूप से 10 वरिष्ठ कांग्रेसियों को निष्कासित कर दिया गया है। उन्होंने कहा कि पूरे मामले में गांधी परिवार को दखल देना चाहिए, वरना स्थिति काफी खराब हो जाएगी।
ऐसी स्थिति में भाजपा सरकार की नीतियों के खिलाफ 14 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित कांग्रेस की महारैली में यूपी से हजारों लोगों की हिस्सेदारी का दावा कैसे पूरा होगा, यह बड़ा सवाल है। जिन पुराने चेहरों को लोग पहचानते थे, अब या तो वे पार्टी से निकाल दिए गए हैं या पैदल कर दिए गए हैं। जो नए आए हैं, उन्हें अभी ढंग से कार्यकर्ता पहचानते तक नहीं हैं, ऐसे में वह संख्या बल कैसे जुटाएंगे?
एक पुराने कांग्रेसी का कहना है, "अब कांग्रेस में कार्यकर्ता बचे कहां हैं? वहां भी मैनेजमेंट कंपनी चल रही है। इवेंट की तरह हर कार्यक्रम होता है। ये लोग जमीनी हकीकत से दूर हैं। प्रदेश में पार्टी के सामने चेहरे का बड़ा संकट है। अगर सोनिया गांधी ने संज्ञान न लिया तो आगे चलकर कांग्रेस की हालत और खराब हो जाएगी।"