लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election) के रिजल्ट आने के बाद चर्चा का बाजार गर्म है कि अगर यूपी में अखिलेश यादव करिश्मा कर सकते हैं तो बिहार में तेजस्वी यादव से कहां चूक हो गई और चिराग पासवान 100% स्ट्राइक के साथ कैसे सुपर स्टार परफॉर्मर बन गए? अगर आप भी इन सवालों के जवाब ढूंढ रहें है तो इसका सीधा जवाब है कि राजद 'माय' की ही पार्टी ही बनी रही, 'बाप' की पार्टी नहीं बन पाई। माई (MY) में M का मतलब- मुस्लिम और Y का मतलब- यादव है। बाप (BAAP) में B का मतलब- बहुजन, A का मतलब- अगड़ा, A का मतलब- आधी आबादी और P का मतलब-पुअर या गरीब की पार्टी है।
तेजस्वी ने जितनी रैलियां की उसमें दो ही चेहरे दिखे, एक उनका खुद का और दूसरा मुकेश सहनी का। उनकी रैलियों में भीड़ जरूर उमरी लेकिन वो वोट में तब्दील नहीं हो पाई। मुस्लिम और यादव को छोड़कर दूसरी जातियां अपने को राजद या तेजस्वी के साथ कनेक्ट नहीं कर पाई। इसमें अगड़ी और पिछड़ी दोनों जातियां शामिल रही। वहीं, उत्तर प्रदेश में सपा को इस बार मुस्लिम, यादव, पिछड़ी जातियां और अगड़ी जातियां का साथ मिला। परिणाम सबसे सामने हैं। एक नया प्रयोग इस बार तेजस्वी ने किया और वह भी उल्टा पड़ गया। यादव और भूमिहार का गठजोड़ जो आजतक RJD के DNA में था ही नहीं। इसका रिएक्शन दूसरी जातियों पर हुआ। इतना ही नहीं, तेजस्वी को बिहार का एकलौता सर्वमान्य चेहरा साबित करने के चक्कर में कई गलत टिकट भी बांटे गए। इसका भी नुकसान पार्टी को उठाना पड़ा और राजद सिर्फ 4 सीट पर सिमट गई।
चिराग कैसे बन गए चैंपियन?
अब लौटते हैं कि चिराग पासवान पर कि वो कैसे डिस्टिंक्शन मार्क्स से पास हो गए? 5 में से 5 सीट पर कैसे जीतें! अगर आप चिराग की राजनीति को नजदीक से देखें तो वह बहुत कुछ आपको फिल्मी कैरेक्टर लगेगा। उनका बेहतरीन ड्रेसिंग सेंस, जिसमें जिंस पर कुर्ता, बेहतरीन हेयर स्टाइल, लच्छेदार बातें, बड़े-बड़े सपने दिखाने की कला, अपने पिता को लेकर बार-बार इमोशनल होना और भोली-भाली जनता को 'बिहार फर्स्ट-बिहारी फर्स्ट' से बेहतर भविष्य का ख्वाब दिखाना। बिहार की गरीब जनता और एस्पीरेशन यूथ के बीच उनका यह कैरेक्टर हीट है। इसी के सहारे उनकी फिल्म भी हीट हो रही। वैसे राजनीति से पहले वो हीरो ही बनने गए थे। कंगना राणावत के साथ एक फिल्म भी आई थी।
एक और खासियत चिराग को तेजस्वी से अलग करता है, वह है कि अगड़े और पिछड़े कॉकटेल बनाने में माहिर होने की कला। चिराग 'पासवान' जाति की राजनीति जरूर करते हैं लेकिन इसका ठप्पा अपने ऊपर लगने नहीं दे रहे हैं। हालांकि, हकीकत में देखें तो उनकी राजनीति अपनी जाति के इर्द गिर्द ही घुमती है। कुछ किस्मत भी कह सकते हैं। खैर, मौजूदा समय में देश में वही राजनेता सफल है जो सपने दिखा सके। आम और गरीब जनता तो बेहतरी की उम्मीद में पूरी जिंदगी काट देती है।