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राहुल गांधी ने आखिर रायबरेली को क्यों चुना वायनाड को क्यों नहीं? यहां 5 प्वाइंट में समझें मामला

राहुल गांधी रायबरेली के सांसद बन देश की संसद में बैठेंगे उन्होंने बीते दिन यह फैसला ले लिया। साथ ही उन्होंने वायनाड की सीट को अपनी बहन प्रियंका गांधी को मैदान में उतारा है।

Written By: Shailendra Tiwari @@Shailendra_jour
Published on: June 18, 2024 13:17 IST
राहुल गांधी- India TV Hindi
Image Source : PTI राहुल गांधी

राहुल गांधी ने रायबरेली से सांसद बने रहना चुना और केरल की वायनाड सीट को छोड़ दिया। साथ ही वायनाड के उपचुनाव में प्रियंका गांधी को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला भी लिया। हालांकि इस बार राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव 2024 में दोनों सीटों पर अच्छे मार्जिन से जीत दर्ज की है। इसके बाद से लोगों के मन में यह जानने की उत्सुकता बनी है कि आखिर जिस सीट ने 2019 में उन्हें सांसद बनाया, उसे राहुल ने क्यों छोड़ा। आइए समझते हैं.....

तीखा राजनीतिक संदेश

2014 में मोदी लहर के बाद से कांग्रेस अपना सारा पैसा राहुल गांधी पर लगा रही है। इसके बाद इस साल भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस को सबल मिला कि वह लोगों का भरोसा जीत पा रही। ऐसे राहुल गांधी का केरल की वायनाड की जगह रायबरेली को चुनना, पार्टी की रणनीति का संकेत देता है। चुनाव नतीजों से उत्साहित कांग्रेस अब सरकार पर ज्यादा आक्रामक रुख दिखा रही है। 2024 तो बस एक मजबूत और तीखा राजनीतिक संदेश है। कांग्रेस असल में 2029 के चुनाव तक के समय का बेहतर इस्तेमाल करना चाहती है। बता दें कि नरेंद्र मोदी की सरकार अभी गठबंधन के सहारे है, ऐसे में कांग्रेस उसे कमजोर समझ रही है और अपनी पूरी कोशिश करेगी की राहुल और प्रियंका गांधी दोनों विपक्ष की बेंच पर बैठाकर सरकार पर हमला करें।

कांग्रेस में आया कांफिडेंस

2024 के लोकसभा चुनाव ने कांग्रेस को यह भरोसा दिलाया है कि वह भाजपा से सीधी लड़ाई में मुकाबला करने में सक्षम है। कांग्रेस के सीधे मुकाबलों का विश्लेषण आप इन आकंड़ों से समझ सकते हैं कि कैसे कांग्रेस ने 2014 में 44 सीटों पर सिमटी, फिर 2019 में 52 से 2024 के लोकसभा चुनाव में अपनी सीटों की संख्या लगभग दोगुनी यानी 99 कर डाली।

आइए 5 फैक्टर से समझते हैं क्यों राहुल गांधी ने केरल की वायनाड की बजाय यूपी की रायबरेली लोकसभा सीट को चुना...

1) बसपा वोट आधार के जरिए खोई जमीन वापस पाने की उम्मीद

2024 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने यूपी में छह सीटें जीतीं। 2019 में, इसने सिर्फ़ रायबरेली सीट जीती थी। अभी इंडिया ब्लॉक ने 43 सीटें जीतीं, जिनमें से 36 समाजवादी पार्टी ने जीतीं। यह एनडीए के लिए एक बड़ा झटका था, जिसने 2019 में यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 62 सीटें जीती थीं। 2024 के चुनाव में, एनडीए सिर्फ़ 36 सीटें जीतने में कामयाब रही, जबकि भाजपा ने 33 सीटें हासिल कीं। वोट शेयर के मामले में सबसे ज़्यादा नुकसान मायावती की अगुआई वाली बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को हुआ। इसका वोट शेयर 19% से घटकर 9% रह गया, यानी 10 प्रतिशत अंकों की गिरावट। ये वोट मुख्य रूप से समाजवादी पार्टी को गए, लेकिन कांग्रेस को भी मिले। अगर सपा ने बसपा के 6-7% वोट शेयर पर कब्ज़ा किया, तो कांग्रेस को 2-3% का फ़ायदा हुआ। कांग्रेस को उम्मीद है कि वह उत्तर प्रदेश में दलित, मुस्लिम और ब्राह्मण वोटों के झुकाव का फ़ायदा उठा सकती है। उम्मीद की किरण यही है कि राहुल गांधी ने केरल के वायनाड की बजाय यूपी की रायबरेली सीट को चुना है। जबकि 2019 में वायनाड से ही राहुल गांधी संसद पहुंचे, क्योंकि वे अमेठी से बीजेपी की स्मृति ईरानी से हार गए थे।

2) रणनीति बदलना और आक्रामक रुख अपनाना

2024 के लोकसभा चुनाव के नतीजों से उत्साहित कांग्रेस ने अपना रुख बदल लिया है। राहुल गांधी का रायबरेली सीट बरकरार रखना और वायनाड सीट छोड़ना इस आक्रामक रुख का साफ संकेत दे रहा है कि रणनीति में बदलाव, अब डिफेंसिव न होकर आक्रामक हो गई है। 2019 में अमेठी हार के बाद वायनाड सीट एक डिफेंसिव दृष्टिकोण था। वहीं, उत्तर प्रदेश में 2024 के लोकसभा चुनाव के चुनावी नतीजे ही हैं, जिस कारण राहुल गांधी ने केरल के वायनाड के बजाय रायबरेली को चुना। वायनाड से दक्षिण की ओर राहुल गांधी और उत्तर की ओर बहन प्रियंका का ध्यान रखना इनकी पुरानी रणनीति थी और इस लोकसभा चुनाव के नतीजों ने इसे बदल दिया है। ऐसे में महाराष्ट्र, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से कांग्रेस के लिए उम्मीद जगी है और इसी वजह से उनके रुख में बदलाव आया है। यह कारगर होगा या नहीं, यह तो समय ही बताएगा। 

3) कांग्रेस में जान डालने के लिए उत्तर प्रदेश में जीतना जरूरी

अक्सर सुना होगा कि लोगों को कहते हुए कि दिल्ली की सत्ता का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर जाता है। इसलिए जब क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के वोट बैंक में सेंध लगानी शुरू की तो सबसे पहले उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की ताकत में गिरावट देखने को मिली। दिल्ली में भी उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी। ऐसे में कांग्रेस को पूरी तरह से जान डालने के लिए उत्तर प्रदेश में उसे विजय हासिल करनी होगा। यूपी में 6 सीटें, हालांकि समाजवादी पार्टी के समर्थन से, पर ये कांग्रेस के लिए ग्रीन सिग्नल का संकेत हैं। कांग्रेस के लिए दूसरा अच्छा संकेत यह है कि एनडीए खेमे में जाट नेता जयंत चौधरी और उनके राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के बावजूद यूपी और हरियाणा में जाट वोटर भी कांग्रेस की ओर नजर आ रहे हैं।

4) दिल जीतना है तो हार्टलैंड जीतना होगा

दिल जीतने के लिए कांग्रेस को हार्टलैंड को जीतना होगा। यहीं पर उसे अकेले और क्षेत्रीय सहयोगियों के साथ गठबंधन करके भाजपा से मुकाबला करना होगा। कांग्रेस को 9 हार्टलैंड राज्यों को जीतना जरूरी है क्योंकि वे 543 लोकसभा सांसदों में से 218 को भेजते हैं। हार्टलैंड राज्यों में उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा और राजस्थान में कांग्रेस ने बेहतर प्रदर्शन किया है। कांग्रेस हिंदी हार्टलैंड में अपनी संभावनाओं को भुना रही है और इसीलिए बराबरी के सबसे बड़े दावेदार राहुल गांधी को उत्तर प्रदेश से आगे किया जा रहा है। यूपी में अधिक सीटें जीतकर कांग्रेस बिहार में भी प्रभाव की उम्मीद कर सकती है, जहां वह राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन में है। जानकारी दें दें कि हिंदी पट्टी के राज्यों को हार्टलैंड कहा जाता है।

5) प्रियंका के लिए सुरक्षित दांव

केरल में 2026 में विधानसभा चुनाव होंगे और सबसे अधिक संभावना है कि यह चुनाव कांग्रेस के पक्ष में जाएगा। यह राज्य, जो या तो सीपीएम के नेतृत्व वाले एलडीएफ या कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूडीएफ के पक्ष में झुकता रहा है, वहीं, 2021 में एलडीएफ को फिर से सत्ता में लाकर अधिकांश राजनीतिक पंडितों को चौंका दिया था। हालांकि, लोकसभा चुनाव में सीपीआई(एम) का प्रदर्शन खराब रहा और उसे सिर्फ एक सीट पर जीत मिली। वहीं, कांग्रेस ने 20 लोकसभा सीटों में से 14 पर जीत हासिल की, जबकि उसकी सहयोगी आईयूएमएल ने दो सीटें जीतीं। कांग्रेस को पूरा भरोसा है कि केरल, चाहे राहुल गांधी वायनाड को बरकरार रखे या नहीं, 2026 में पार्टी को जीतना है। साथ ही प्रियंका गांधी के कमान संभालने से कांग्रेस के अभियान को भी बढ़ावा मिलेगा। बता दें कि प्रियंका गांधी वाड्रा ने पार्टी के लिए बड़े पैमाने पर प्रचार किया है। राजनीतिक पंडित मानते हैं कि वायनाड में प्रियंका की मौजूदगी से वहां भी पार्टी को मदद मिलने की उम्मीद है।"

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