नई दिल्लीः हरियाणा में सरकार के खिलाफ कथित माहौल के बाद भी कांग्रेस की बुरी तरह से हार हुई और पार्टी सरकार बनाने से चूक गई। हरियाणा में कांग्रेस की क्यों हार हुई? इसके कई साइड इफेक्ट और वजह सामने आने लगी है। प्रदेश में गुटबाजी भी हार की बड़ी वजह रही। आइए जानते हैं कांग्रेस की हार के बड़े कारण
हरियाणा में जाट वर्सेस अन्य में कांग्रेस को मिली करारी हार
हरियाणा में एक बिरादरी यानी जाटों के खिलाफ अन्य 35 बिरादिरियो के काउंटर पोलराइजेशन से बीजेपी को फायदा मिला और अब तीसरी बार राज्य में सरकार बनाने जा रही है। कांग्रेस के टिकट डिस्ट्रीब्यूशन से लेकर बागी उम्मीदवारों ने भी कांग्रेस को तीसरी बार सत्ता से दूर रखने में अहम भूमिका निभाई।
बिखरी हुई कांग्रेस को नही मिला जनता का साथ
लोकसभा चुनाव में राज्य की 10 में से पांच सीट जीतने वाली कांग्रेस पार्टी विधान सभा चुनाव में बिखरी हुई नजर आई। राज्य के टिकट बंटवारे में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा का वर्चस्व रहा जिससे सिरसा से सांसद कुमारी शैलजा और राज्यसभा सांसद रणदीप सिंह सुरजेवाला नाराज़ हो गए। सुरजेवाला चुनावी प्रचार में सिर्फ कैथल में अपने बेटे को चुनाव जिताने में मेहनत करते नजर आए तो कुमारी शैलजा चुनावी कैंपेन के शुरू के 12 से 14 दिन कैंपेन में शामिल नहीं हुई।
2009 से राज्य में नही कोई प्रदेश संगठन
कांग्रेस में हरियाणा में राज्य की प्रदेश इकाई का गठन 2008-2009 के बाद नही हो पाया है। 2014 में हालांकि पार्टी की प्रदेश इकाई का गठन हुआ, लेकिन बूथ और जिला कमिटी का गठन खेमेबाजी की वजह से नहीं हो पाया। 2022 में राज्य के प्रभारी विवेक बंसल ने प्रदेश कांग्रेस कमेटी के गठन की लिस्ट बनाई लेकिन यह कमेटी कभी अस्तित्व में नहीं आ पाई। कुल मिलाकर पार्टी में गुटबाजी इस कदर हावी है कि राज्य में 15 साल से राज्य में कांग्रेस का बूथ लेवल और जिला लेवल पर कोई संगठन नहीं है।
राहुल गांधी के इच्छा के बावजूद नहीं हुआ आप के साथ गठबंधन
हरियाणा में लगभग 12 सीटें ऐसी थी, जहां पर कांग्रेस के बागियों की वजह से पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा। बल्लभगढ़, बहादुरगढ़, पुंडरी, अंबाला कैंट, तिगांव, गुहाना, असंद , उचाना कलां, सफीदो, महेंद्रगढ़, राई, रानियां। इन सीटों पर कांग्रेस के बागी उम्मीदवारों की वजह से कांग्रेस के उम्मीदवारों को हार हुई।
आम आदमी पार्टी को 7 सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार की हार के मार्जिन से मिले ज्यादा वोट
लगभग सात सीट हरियाणा में ऐसी रही जिनमें आम आदमी पार्टी के उम्मीदवारों को कांग्रेस उम्मीदवार के हार के मार्जिन से ज्यादा वोट पड़ा। अगर गठबंधन होता तो शायद नतीजे कुछ और होते।
चुनाव से ठीक एक दिन पहले अशोक तंवर की एंट्री से कांग्रेस को नही हुआ कोई फायदा
भूपेंद्र सिंह हुड्डा से लड़कर कांग्रेस पार्टी छोड़कर बीजेपी ज्वाइन करने वाले अशोक तंवर को चुनाव से महज एक दिन पहले पार्टी ज्वाइन करवाने से जाट वोट भी कांग्रेस पार्टी से छिटक गया। चुनाव के नतीजों से पता चलता है कि सिरसा समेत कुछ जगहों पर इनेलो के पक्ष में जाट वोटर रहे। तंवर सिरसा जिले से ही आते हैं और दलित भी हैं लेकिन इसका फायदा कांग्रेस को नहीं मिला।
दलित वोट बैंक कांग्रेस से छिटका
कुमारी सैलजा और अशोक तंवर दलित समुदाय से आते हैं और प्रदेश के दलितों के बड़े नेता माने जाते हैं लेकिन ये लोग अपने समुदाय का वोट कांग्रेस को ट्रांसफर नहीं करा सके।