नई दिल्ली: भारत सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को देश का सबसे बड़ा नागरिक सम्मान 'भारत रत्न' देने का ऐलान किया है। कर्पूरी ठाकुर को 'जननायक' भी कहा जाता था। वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वह पिछड़े वर्गों के हितों को आवाज देनेवाले नेता माने जाते थे। साथ ही अपनी सादगी के लिए भी वे जाने जाते थे।
समस्तीपुर में हुआ जन्म
कर्पूरी ठाकुर का जन्म 24 जनवरी 1924 को समस्तीपुर में हुआ था। वे दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और एक बार भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए। उन्होंने मुख्यमंत्री रहते हुए बिहार में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण का रास्ता साफ किया था। उन्होंने कभी खुद को अपने संकल्प से विचलित नहीं होने दिया। इसके लिए उन्हें अपनी सरकार की कुर्बानी भी देनी पड़ी। बिहार बोर्ड की मैट्रिक परीक्षा में अंग्रेजी की अनिवार्यता को भी उन्होंने ही खत्म किया था।
1940 में स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े
समस्तीपुर के पितौझिया गांव में जन्मे कर्पूरी ठाकुर ने 1940 में पटना से मैट्रिक परीक्षा पास की थी। उस वक्त देश गुलाम था। मैट्रिक परीक्षा पास करने के बाद कर्पूरी ठाकुर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने समाजवाद का रास्ता चुना और आचार्य नरेंद्र देव के साथ समाजवादी आंदोलन से जुड़ गए। 1942 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
1952 में जीता था पहला चुनाव, फिर कभी नहीं हारे
कर्पूरी ठाकुर ने 1952 में पहला विधानसभा चुनाव जीता था। इसके बाद कभी भी वे विधानसभा चुनाव नहीं हारे। वे अपनी सादगी के लिए जाने जाते थे। उन्होंने सामाजिक मुद्दों को अपने एजेंडे में आगे रखा। वे जनता के सवाल को सदन में मजबूती से उठाने के लिए जाने जाते थे। समाज के कमजोर तबकों पर होनेवाले जुल्म और अत्याचार की घटनाओं को लेकर कर्पूरी ठाकुर सरकार को भी कठघरे में खड़ा कर देते थे।
पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री
वे बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री रहे हैं। पहली बार दिसंबर 1970 से जून 1971 तक वे मुख्यमंत्री रहे। वे सोशलिस्ट पार्टी और भारतीय क्रांति दल की सरकार में सीएम बने थे। सीएम बनने के बाद उन्होंने सरकारी नौकरियों में पिछड़ों को आरक्षण दिया था। वे दूसरी बार जनता पार्टी की सरकार में जून 1977 से अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री रहे।